शोले
धर्मेंद्र की फिल्मी करियर की सबसे चर्चित भूमिका शोले में वीरू की रही। अमिताभ बच्चन के साथ उनकी जोड़ी ने दोस्ती और मित्रता की मिसाल पेश की। वीरू का जिंदादिल और नटखट किरदार दर्शकों के दिलों में हमेशा बसा रहेगा। फिल्म में धर्मेंद्र की ऊर्जा, ह्यूमर और एक्शन का बेहतरीन मिश्रण था, जिसने इस किरदार को भारतीय सिनेमा की सबसे यादगार भूमिकाओं में शामिल कर दिया।
सत्यकाम
1978 में आई फिल्म ‘सत्यकाम’ में धर्मेंद्र ने सत्यप्रिय आचार्य का किरदार निभाया। यह भूमिका सिद्धांतों और आदर्शों पर अडिग व्यक्ति की थी। धर्मेंद्र ने इस किरदार में गहन भावनात्मक और नैतिक जटिलताओं को बेहतरीन ढंग से पेश किया। उनके अभिनय ने पात्र को इतना प्रभावशाली बना दिया कि इसे भारतीय सिनेमा के क्लासिक किरदारों में गिना जाता है।
चुपके-चुपके
ऋषिकेश मुखर्जी के निर्देशन में बनी 1975 की फिल्म ‘चुपके-चुपके’ में धर्मेंद्र ने प्रोफेसर परिमल त्रिपाठी और प्यारे मोहन इलाहाबादी का किरदार निभाया। इस फिल्म में उनकी कॉमिक टाइमिंग सहजता और चेहरे के भाव दर्शकों को खूब प्रभावित करने वाले थे। धर्मेंद्र की यह भूमिका हिंदी सिनेमा की बेहतरीन कॉमेडी भूमिकाओं में गिनी जाती है, जिसने फिल्म को क्लासिक बनाने में अहम योगदान दिया।
अनुपमा
ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म अनुपमा में धर्मेंद्र ने अशोक का किरदार निभाया। कहानी एक जिद्दी युवक और उमा के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसमें अशोक का किरदार भावनात्मक और संवेदनशील था। धर्मेंद्र ने अपने अभिनय से इसे जीवंत और प्रभावशाली बनाया। उनकी सहजता और किरदार में उतरने की क्षमता ने दर्शकों को पूरी तरह मंत्रमुग्ध कर दिया।
फूल और पत्थर में धर्मेंद्र ने युवा अपराधी शक्ति सिंह शाका की भूमिका निभाई। शाका एक विधवा महिला के लिए अपने बुरे कर्म छोड़ देता है और सुधर जाता है। इस फिल्म ने सामाजिक मान्यताओं और बदलाव की जरूरत को भी दर्शाया। धर्मेंद्र ने अपने किरदार में गहराई और संवेदनशीलता का बेहतरीन मिश्रण पेश किया।
निर्देशक श्रीराम राघवन की फिल्म जॉनी गद्दार में धर्मेंद्र ने गैंग लीडर शेषाद्रि सेशु की भूमिका निभाई। इस फिल्म में उनका किरदार तीव्र रहस्यमय और प्रभावशाली था। धर्मेंद्र की मौजूदगी ने फिल्म में रोमांच और गहराई दोनों ही बढ़ा दिए। उनके संवाद और अभिनय का प्रभाव दर्शकों पर लंबे समय तक बना रहा।
सीता और गीता
फिल्म सीता और गीता में धर्मेंद्र राका के रोल में थे। इस फिल्म में उनके किरदार को खूब सराहा गया। हेमा मालिनी के डबल रोल ने कहानी में और रोचकता जोड़ दी। धर्मेंद्र की दमदार अभिनय शैली ने किरदार को दर्शकों के दिल में अमिट जगह दिलाई।
यादों की बारात
1973 में रिलीज हुई ‘यादों की बारात’ में धर्मेंद्र ने शंकर का किरदार निभाया। यह पहली मसाला फिल्म थी, जिसमें एक्शन, रोमांस, संगीत, अपराध और थ्रिलर सभी शैलियों का बेहतरीन मिश्रण था। धर्मेंद्र ने अपने अभिनय और स्क्रीन प्रेजेंस से इस फिल्म को भी दर्शकों के लिए यादगार बना दिया।
धरम वीर
मनमोहन देसाई के निर्देशन में बनी 1977 की फिल्म ‘धरम वीर’ में धर्मेंद्र ने धरम का किरदार निभाया। उनकी और जितेन्द्र की जोड़ी दर्शकों को बेहद पसंद आई। फिल्म में धर्मेंद्र ने अपने अभिनय, दमदार संवाद और स्टाइल से किरदार में जान डाल दी।
लोफर
फिल्म ‘लोफर’ में धर्मेंद्र ने रंजीत का किरदार निभाया। यह रोल स्टाइलिश, करिश्माई और अपराध की दुनिया में उलझा हुआ था, लेकिन दिल से नेक था। धर्मेंद्र की इस भूमिका की आलोचकों और दर्शकों दोनों ने खूब सराहना की। धर्मेंद्र ने अपने फिल्मी करियर में हर किरदार को पूरी जान और आत्मा के साथ निभाया। उनका अभिनय, उनका करिश्मा और उनकी स्क्रीन पर मौजूदगी हमेशा दर्शकों के दिलों में जीवित रहेगी। उनके जाने से हिंदी सिनेमा ने एक युग खो दिया, लेकिन उनकी यादें और फिल्मों का असर हमेशा अमिट रहेगा।
