सूत्रों के अनुसार जल संसाधन विभाग द्वारा मंदाकिनी नदी में घाट निर्माण के लिए सीमित खनन की अनुमति ली गई थी। लेकिन पीपीएस कंपनी के ठेकेदार ने इस अनुमति का दुरुपयोग करते हुए नदी किनारे से पत्थर और मुरुम का अवैध उत्खनन शुरू कर दिया। आरोप हैं कि यह सब कार्य जल संसाधन विभाग के एसडीओ पुष्पेंद्र खरे के मौखिक निर्देश पर हो रहा था।
प्रशासन की कार्रवाई और संदिग्ध पहलू
स्थानीय लोगों द्वारा सूचना मिलने पर चित्रकूट तहसीलदार मौके पर पहुंचे और खनन में लगे पोकलैंड मशीन को जप्त कर लिया। हालांकि ट्रक मौके से गायब हो गए जिससे यह संदेह पैदा हो गया कि मामले में पहले से सूचना थी और यह पूरी घटना किसी संरक्षण के तहत हो रही थी। सबसे हैरान करने वाली बात तब सामने आई जब प्रशासन के अधिकारियों के मौके पर पहुंचते ही संबंधित जिम्मेदारों के मोबाइल फोन बंद हो गए। यह घटनाक्रम इस बात की ओर इशारा करता है कि क्या यह पूरी प्रक्रिया पूर्व नियोजित और विभागीय मिलीभगत का हिस्सा है?
इस मामले में प्रशासन की निष्क्रियता और जिम्मेदार अधिकारियों की संलिप्तता के आरोप उभर रहे हैं। यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या आस्था और पर्यावरण से जुड़े इस अहम स्थान की अवैध उत्खनन के चलते हानि हो रही है? क्या सरकारी योजनाओं की आड़ में इस तरह के काले कारोबार को बढ़ावा दिया जा रहा है?
