अधिकारी ने बताया, विकसित भारत शिक्षा अधीक्षण की स्थापना से संबंधित विधेयक को मंत्रिमंडल ने मंजूरी दे दी है। यूजीसी गैर-तकनीकी उच्च शिक्षा क्षेत्र की, जबकि एआईसीटीई तकनीकी शिक्षा की देखरेख करती है और एनसीटीई शिक्षकों की शिक्षा के लिए नियामक निकाय है।
मेडिकल-लॉ कॉलेज दायरे में नहीं
प्रस्तावित आयोग को उच्च शिक्षा के एकल नियामक के रूप में स्थापित किया जाएगा, लेकिन मेडिकल और लॉ कॉलेज इसके दायरे में नहीं आएंगे। इसके तीन प्रमुख कार्य प्रस्तावित हैं-विनियमन, मान्यता और व्यावसायिक मानक निर्धारण। वित्त पोषण, जिसे चौथा क्षेत्र माना जाता है, अभी तक नियामक के अधीन प्रस्तावित नहीं है।
HECI के अंतर्गत चार वर्टिकल (प्रभाग) होंगे
– राष्ट्रीय उच्च शिक्षा विनियामक परिषद – चिकित्सा और विधि शिक्षा को छोड़कर सभी क्षेत्रों का नियमन करेगी
– राष्ट्रीय प्रत्यायन परिषद – गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए प्रत्यायन ( एक्रीडिएशन) निकाय
– सामान्य शिक्षा परिषद (जनरल एजुकेशन काउंसिल )- शिक्षण के तौर तरीके और मानक निर्धारित करेगी
– उच्च शिक्षा अनुदान परिषद – फंड से जुड़े मामले देखेगी (सरकार का नियंत्रण बना रहेगा)
क्या होगा फायदा
– एक रिपोर्ट के मुताबिक अधिकारियों ने कहा कि नए फ्रेमवर्क से गवर्नेंस सरल होगी। रेगुलेटर का ओवरलैप कम होगा। सरकारी और प्राइवेट संस्थानों में शैक्षणिक गुणवत्ता तथा सीखने के रिजल्ट पर ज्यादा फोकस होगा। शिक्षा मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, ‘इस विभाजन का उद्देश्य हितों के टकराव को रोकना, सूक्ष्म प्रबंधन (माइक्रोमैनेजमेंट) को कम करना और एक अधिक पारदर्शी नियामकीय ढांचा तैयार करना है।’
– प्रस्तावित कानून के तहत उच्च शिक्षा के कामकाज का व्यवस्थित तरीके से बंटवारा होगा। रेगुलेशन, एक्रीडिएशन, पढ़ने पढ़ाने के मानक सेट करना और फंड, इन सभी कार्यों को अलग-अलग वर्टिकल्स के माध्यम से संचालित किया जाएगा। इससे किसी एक संस्था में लंबे समय से चली आ रही बहु-शक्तियों की केंद्रीकरण की स्थिति समाप्त होगी।
– नए विधेयक के समर्थकों का तर्क है कि यह उच्च शिक्षा क्षेत्र में लंबे समय से चली आ रही प्रशासनिक खामियों को दूर करता है। एक-दूसरे के अधिकार क्षेत्रों से टकराने वाले कई नियामक निकायों के कारण अकसर विरोधाभासी नियम बनते रहे हैं, मंजूरियों में देरी हुई है। छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय (पूर्व में कानपुर विश्वविद्यालय) के कुलपति प्रोफेसर विनय पाठक ने कहा, ‘सिंगल रेगुलटर शैक्षणिक मानकों में सामंजस्य ला सकता है, समान गुणवत्ता मानक सुनिश्चित कर सकता है और विश्वविद्यालयों को पाठ्यक्रम, शिक्षण पद्धति और शोध में नवाचार के लिए अधिक स्वतंत्रता दे सकता है, साथ ही परिणामों के प्रति जवाबदेह भी बनाए रखेगा।’
2018 में भी इस बिल का तैयार हुआ था ड्राफ्ट
यूनिफाइड रेगुलेटर (एक ही संस्था द्वारा पूरी उच्च शिक्षा की निगरानी) का विचार कई सालों से चल रहा है। एचईसीआई बिल का पहला ड्राफ्ट 2018 में आया था। उस समय इसका मकसद यूजीसी को खत्म करके एक नया केंद्रीय आयोग बनाना था, लेकिन उस वक्त राज्य स्तर पर इसका विरोध हुआ। राज्य सरकारों ने कहा कि इससे सब कुछ केंद्र सरकार के नियंत्रण में आ जाएगा। इस वजह से इस बिल पर काम आगे नहीं बढ़ा। अब जो नया बिल लाया जा रहा है, वह एनईपी 2020 में दिए गए विजन को लागू करने की कोशिश है। एनईपी 2020 कहता है कि उच्च शिक्षा की व्यवस्था को आधुनिक और सरल बनाने के लिए एक ही रेगुलेटर होना चाहिए, जो तकनीकी शिक्षा और शिक्षक शिक्षा जैसी सभी चीजों को देखे।
