तानसेन: संगीत सम्राट की कहानी जिनकी आवाज़ में अग्नि और बादल दोनों बसते थे


नई दिल्ली । तानसेन जिनका नाम भारतीय संगीत के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा गया है उन्‍हें संगीत सम्राट माना जाता है। उनका जीवन और संगीत दोनों ही रहस्य और किवदंतियों से भरपूर हैं। कहा जाता है कि उनकी आवाज़ में एक विशेष प्रकार का जादू था जिससे अग्नि और बादल दोनों सक्रिय हो जाते थे। तानसेन का संगीत केवल एक कला नहीं था बल्कि यह प्रकृति के साथ एक संवाद था जो श्रोताओं के दिलों और प्रकृति दोनों को छूता था।

तानसेन का जन्म ग्वालियर के पास स्थित बेहट गांव में हुआ था। बचपन में उनका नाम तन्ना था और वे एक शरारती और जिज्ञासु बालक थे। गांव वाले अक्सर उनकी आवाजों से चौंकते थे जो वह जानवरों और पक्षियों की तरह निकालते थे। कभी जंगल में शेर की दहाड़ सुनाई देती तो कभी पक्षियों की अजीब आवाजें आतीं। यह सब तन्ना की आवाज़ का ही जादू था। लेकिन इस प्रतिभा के साथ वह धीरे-धीरे संगीत की गहरी दुनिया में कदम रखने लगे जो अंततः उन्हें भारत के महानतम संगीतकारों में से एक बना देगा।

तानसेन के संगीत से जुड़ी कई किवदंतियां प्रचलित हैं। उनकी आवाज़ इतनी प्रभावशाली थी कि कहा जाता है कि वह जो राग गाते थे वह न केवल श्रोताओं के दिलों में गूंजते थे बल्कि प्रकृति पर भी उनका प्रभाव पड़ता था। उनके बारे में यह किंवदंती है कि जब वह दीपक राग गाते थे तो बुझी हुई दीपक अपने आप जल उठती थीं। इसी तरह मेघ राग से वह ऐसा प्रभाव छोड़ते थे कि आसमान में बादल घिर आते और बारिश हो जाती। इसके अलावा उनके गायन से चट्टानें भी पिघलने का दावा किया जाता है।

तानसेन का संगीत अकबर के दरबार में बहुत प्रसिद्ध हुआ। 1556 में वे अकबर के दरबार में आए और जल्द ही वह ‘नवरत्नों’ में से एक बन गए। उनकी गायन कला और संगीत में महारत के कारण उन्हें ‘संगीत सम्राट’ की उपाधि दी गई। वह दरबार में न केवल एक गायक थे बल्कि एक संगीत गुरु भी थे। अकबर और तानसेन के बीच की मित्रता और संगीत के प्रति उनका प्रेम अविस्मरणीय था। अकबर ने तानसेन के संगीत को इतना पसंद किया था कि वह अक्सर उनके रागों से मंत्रमुग्ध हो जाते थे।

तानसेन की गायन शैली में भव्यता जटिलता और गहराई थी जो उन्हें अपने समकालीन संगीतज्ञों से अलग करती थी। वह मुख्य रूप से हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के बड़े प्रवर्तक थे और उनकी गायन में ध्रुपद खयाल और ठुमरी जैसे विभिन्न शैलियों का संगम था। वह केवल एक गायक नहीं थे बल्कि उन्होंने भारतीय संगीत को एक नई दिशा दी। उनकी दी गई रचनाओं में कुछ ऐसे राग भी थे जो आज भी संगीतकारों द्वारा गाए जाते हैं और जिनका प्रभाव भारतीय संगीत पर सदियों तक रहेगा।

तानसेन के संगीत के बारे में सबसे दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने अपनी कला को न केवल अभ्यास बल्कि गहरी साधना और ध्यान के माध्यम से सीखा। उनका जीवन संगीत के प्रति समर्पण का प्रतीक था और इसीलिए उनकी कला ने उन्हें ‘संगीत सम्राट’ का दर्जा दिलवाया। उनके गायन की विशेषता थी कि वह केवल स्वर नहीं गाते थे बल्कि उनकी आवाज़ में एक ऐसी शक्ति थी जो श्रोताओं के दिलों को छू जाती थी।

तानसेन के जीवन के बारे में कई रहस्यमयी कहानियाँ और किवदंतियाँ प्रचलित हैं लेकिन उनकी संगीत यात्रा हमेशा प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी। उनका संगीत भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का एक अमूल्य हिस्सा है। आज भी उनके रागों और गायन को श्रद्धा के साथ याद किया जाता है और संगीत प्रेमी उनके संगीत को हर पीढ़ी में जीवित रखने की कोशिश करते हैं।

तानसेन का जीवन यह साबित करता है कि कला और प्रतिभा न केवल व्यक्ति के जीवन को संवारती है बल्कि वह समाज और संस्कृति को भी समृद्ध करती है। उनके गायन में जो जादू था वह आज भी लोगों के दिलों में गूंजता है और भारतीय संगीत के इतिहास में उनका नाम सदैव अमर रहेगा।