एक निजी टीवी चैनल के कार्यक्रम में उन्होंने इस बारे में विस्तार से बात की। सरमा ने स्पष्ट किया कि असम के मुस्लिम मतदाता.जिनकी संख्या राज्य में महत्वपूर्ण है.अक्सर अपनी वोटिंग पसंद को अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान से जोड़ते हैं। उनका कहना था कि चाहे सरकार 10 हजार रुपये दे या 1 लाख रुपये.कुछ समुदाय.खासकर मुस्लिम मतदाता.उसी सरकार को वोट नहीं देंगे यदि वह सरकार उनकी विचारधारा और पहचान से मेल नहीं खाती।
नकद सहायता को नकारा
एक सवाल के जवाब में.जब मुख्यमंत्री से पूछा गया कि क्या असम में महिलाओं को बिहार की तरह नकद सहायता दी जा सकती है.तो उन्होंने इसे साफ तौर पर खारिज कर दिया। उनका कहना था कि चुनाव में वोटिंग का आधार केवल वित्तीय लाभ नहीं है। वह मानते हैं कि हर समुदाय अपने राजनीतिक विकल्पों का चयन विचारधारा और पहचान के आधार पर करते हैं.न कि केवल आर्थिक प्रोत्साहन पर।
जनसांख्यिकीय बदलाव पर चिंता
मुख्यमंत्री सरमा ने असम में जनसांख्यिकीय बदलाव को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की। उन्होंने बताया कि 2021 में राज्य की मुस्लिम आबादी लगभग 38% थी.और हर दशक में यह 4-5% बढ़ रही है। यदि यह वृद्धि दर जारी रही.तो 2027 तक मुस्लिम आबादी 40% तक पहुंच सकती है। सरमा ने कहा कि यदि मुस्लिम आबादी 50% से अधिक हो गई.तो अन्य समुदायों की सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान पर दबाव बढ़ सकता है।
व्यक्तिगत संबंध वोट में नहीं बदलते
सीएम हिमंत सरमा ने कहा कि उनका व्यक्तिगत संबंध मिया समुदाय की महिलाओं और कई मुस्लिम परिवारों के साथ अच्छा है.लेकिन चुनाव में यह जुड़ाव वोट में तब्दील नहीं होता। उन्होंने यह भी कहा कि भले ही मुस्लिम मतदाता कांग्रेस के पक्ष में वोट करें.भाजपा अपनी स्थिति असम में बनाए रख सकती है।
सरमा ने अंत में कहा..असम में मेरे अपने वे लोग हैं.जो खुद को असमी और भारतीय पहचान से जोड़ते हैं।. उनका यह बयान इस बात को स्पष्ट करता है कि उनकी सरकार की प्राथमिकता राज्य के असमी और भारतीय पहचान के लोगों पर है.और उनकी राजनीतिक नीतियां इसी पर आधारित हैं।
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा का यह बयान असम की राजनीति और वोटिंग पैटर्न को लेकर एक महत्वपूर्ण संकेत है। उन्होंने यह साफ किया कि असम में वोटिंग सिर्फ सरकारी योजनाओं या नकद सहायता पर नहीं.बल्कि विचारधारा और सांस्कृतिक पहचान पर आधारित होती है। इसके साथ हीउन्होंने राज्य में बढ़ती मुस्लिम आबादी और उसके प्रभाव पर भी चिंता जताई।
उनका यह बयान असम की राजनीति के संदर्भ में महत्वपूर्ण है.क्योंकि यह दर्शाता है कि वह न केवल चुनावी रणनीतियों को बल्कि राज्य के सामाजिक और सांस्कृतिक परिदृश्य को भी ध्यान में रखते हुए अपनी नीतियां बना रहे हैं।
