उत्तराखंड धर्मांतरण कानून पर राज्यपाल ने दी ब्रेक सरकार को वापस लौटा बिल


नई दिल्ली । उत्तराखंड की धामी सरकार ने जबरन धर्मांतरण के मामलों में कड़ी सजा का प्रावधान रखने वाले संशोधित उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता संशोधन विधेयक 2025 को राज्यपाल को मंजूरी के लिए भेजा था। हालांकि राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह सेनि ने विधेयक को मंजूरी देने के बजाय तकनीकी आधार पर पुनर्विचार के लिए सरकार को लौटा दिया है। सूत्रों के मुताबिक लोकभवन ने विधेयक के ड्राफ्ट में कुछ तकनीकी गलतियों की वजह से यह कदम उठाया है।

अब राज्य सरकार के सामने दो विकल्प हैं। पहला सरकार इस विधेयक को अगले विधानसभा सत्र में फिर से पारित कराए या दूसरा राज्यपाल की मंजूरी के बिना अध्यादेश लाकर इसे तत्काल लागू किया जाए। अगर सरकार अध्यादेश लाती है तो यह विधेयक तत्काल प्रभाव से लागू हो सकता है लेकिन विधानसभा में इसे फिर से पारित करना अधिक सुरक्षित रास्ता हो सकता है।

यह विधेयक उत्तराखंड में जबरन धर्मांतरण पर सजा को और भी कड़ा करता है। इसे पहले 2018 में लागू किया गया था और 2022 में इसमें कुछ संशोधन किए गए थे। 13 अगस्त 2025 को राज्य सरकार ने एक बार फिर इस कानून में बदलाव करते हुए उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता संशोधन विधेयक 2025 को मंजूरी दी थी। इस बिल के तहत धर्मांतरण के मामलों में सजा को और सख्त किया गया है जिससे राज्य में इस पर पूरी तरह से अंकुश लगाने की कोशिश की जा रही है।

नए विधेयक के अनुसार यदि कोई व्यक्ति छल-बल से धर्मांतरण कराता है तो उसे कड़ी सजा दी जाएगी। पहले यह सजा तीन से 10 साल तक थी जिसे अब बढ़ाकर तीन से 20 साल तक किया गया है। इसके अलावा अगर कोई धर्मांतरण के लिए नाबालिगों का शोषण करता है या महिला को विवाह के झांसे में फंसा कर धर्म परिवर्तन कराता है तो उसे न्यूनतम 20 साल की सजा और अधिकतम आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान किया गया है। इसके साथ ही ऐसे मामलों में जुर्माना भी 10 लाख रुपये तक हो सकता है।

इसके अलावा अब किसी भी व्यक्ति को धर्मांतरण के मामलों की शिकायत करने का अधिकार होगा जबकि पहले यह केवल खून के रिश्तेदारों तक सीमित था। इस विधेयक में एक और महत्वपूर्ण बदलाव यह है कि जिलाधिकारी को गैंगस्टर एक्ट के तहत आरोपी की संपत्ति कुर्क करने का अधिकार दिया गया है।

हालांकि राज्यपाल ने विधेयक को तकनीकी गलतियों के कारण वापस कर दिया है लेकिन यह स्पष्ट है कि धामी सरकार धर्मांतरण के मामलों में कठोर कदम उठाने के लिए प्रतिबद्ध है। अब देखना यह है कि राज्य सरकार इस विधेयक को फिर से कैसे पारित करती है और इसे लागू करने के लिए कौन सा रास्ता अपनाती है।