माओवादी समस्या और बालाघाट का इतिहास
बालाघाट जिला मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीमा पर स्थित है और यहां 90 के दशक से माओवादियों की उपस्थिति काफी सक्रिय रही थी। इस क्षेत्र में माओवादी संगठन द्वारा हिंसक गतिविधियों को अंजाम दिया गयाजिससे इलाके में लाल आतंक का माहौल बन गया था। ग्रामीण क्षेत्रों में माओवादियों द्वारा भय फैलाया गयाऔर स्थानीय प्रशासन और पुलिस की ताकत को चुनौती दी गई। इसके कारण न केवल प्रशासन को कठिनाइयों का सामना करना पड़ाबल्कि नागरिकों की जिंदगी भी प्रभावित हुई थी।
माओवादी संगठन द्वारा इलाके में कई बार हमले किए गएजिसमें पुलिसकर्मियों और नागरिकों की जानें गईं। इन घटनाओं ने क्षेत्रीय प्रशासन को माओवादी गतिविधियों को समाप्त करने के लिए गंभीर कदम उठाने पर मजबूर किया। समय-समय पर सुरक्षा बलों और माओवादी समूहों के बीच मुठभेड़ें होती रहींलेकिन अंततः यह प्रक्रिया धीरे-धीरे कमजोर पड़ती गई।
समर्पण और माओवादी संगठन का कमजोर होना
दीपक और रोहित का आत्मसमर्पण इस बात का प्रतीक है कि माओवादी संगठन अब बालाघाट में पूरी तरह से खत्म हो चुका है। कुछ समय पहले छत्तीसगढ़ के खैरागढ़ इलाके में भी माओवादियों के एक बड़े समूह ने आत्मसमर्पण किया थाजिनमें एक करोड़ के इनामी माओवादी रामधेर भी शामिल था। इसके बाददीपक और रोहित के समर्पण की खबरें इंटरनेट मीडिया पर तेजी से फैली थींऔर यह माना जा रहा था कि बालाघाट से माओवादी गतिविधियों का अंत निकट है।
दीपक और रोहित के समर्पण से यह साफ हो गया है कि माओवादी संगठन के अधिकांश सदस्य अब मुख्यधारा में लौट आए हैं। पुलिस सूत्रों के मुताबिकइन दोनों के समर्पण से माओवादी संगठन के स्थानीय नेटवर्क पर काफी असर पड़ा है। बालाघाट और आसपास के क्षेत्रों में अब माओवादी गतिविधियों का कोई विशेष खतरा नहीं रहा।
पुलिस की रणनीति और समर्पण कार्यक्रम
पुलिस ने माओवादियों को मुख्यधारा में लौटने का अवसर देने के लिए समर्पण योजना की शुरुआत की थीजिसके तहत माओवादी संगठनों के सदस्य आत्मसमर्पण करने पर न केवल सुरक्षा प्रदान की जाती हैबल्कि उन्हें समाज में पुनः एकीकृत करने के प्रयास भी किए जाते हैं। इस योजना के तहत कई माओवादी अब आत्मसमर्पण कर चुके हैंऔर सरकार उन्हें पुनर्वासरोजगार और शिक्षा की सुविधाएं मुहैया करा रही है।
दीपक और रोहित का आत्मसमर्पण इस योजना का ही एक हिस्सा माना जा रहा है। पुलिस का कहना है कि यह समर्पण केवल व्यक्तिगत नहीं बल्कि माओवादी संगठन के लिए भी एक बड़ा संदेश है। यह दिखाता है कि समय के साथ माओवादी हिंसा का रास्ता छोड़कर शांति और सामाजिक विकास की ओर बढ़ने का समय आ गया है।
आगे का रास्ता
दीपक और रोहित के समर्पण के बादपुलिस प्रशासन ने सुरक्षा बलों को उच्चतम स्तर पर अलर्ट कर दिया है ताकि किसी भी प्रकार के विरोधी गतिविधियों को रोका जा सके। साथ हीपुलिस इस समर्पण को लेकर अब जल्द ही एक प्रेस कांफ्रेंस आयोजित कर रही हैजिसमें इस घटना की पूरी जानकारी दी जाएगी और आगे के कदमों पर भी चर्चा की जाएगी।
यह कदम बालाघाट जिले के लिए एक ऐतिहासिक मोड़ हैजहां माओवादी गतिविधियों का अंत हुआ है। इस समर्पण के बादप्रशासन और सुरक्षा बलों को उम्मीद है कि इस इलाके में शांति और विकास की राह खुली है। साथ हीयह अन्य माओवादी क्षेत्रों के लिए भी एक संदेश है कि अगर वे हिंसा छोड़कर मुख्यधारा में लौटते हैंतो उन्हें पुनर्वास और समर्थन मिलेगा।
