आयोग की संरचना कैसी होगी?
प्रस्तावित अधिष्ठान में एक अध्यक्ष, एक वरिष्ठ शिक्षाविद या विषय विशेषज्ञ, केंद्र सरकार का प्रतिनिधि और एक सचिव शामिल होंगे। इसके अलावा, आयोग के अंतर्गत तीन अलग-अलग परिषदें बनाई जाएंगी ताकि नियमन, मान्यता और मानक तय करने के काम आपस में टकराएं नहीं।
तीन परिषदों की भूमिका क्या होगी?
पहली है नियामक परिषद Regulatory Council । यह परिषद कॉलेजों और यूनिवर्सिटी के संचालन पर नजर रखेगी। यह सुनिश्चित करेगी कि संस्थान शिक्षा को केवल मुनाफे का जरिया न बनाएं, फंड का सही इस्तेमाल हो और छात्रों व शिक्षकों की शिकायतों का समाधान समय पर हो।
दूसरी है मान्यता परिषद Accreditation Council । इसका काम यह तय करना होगा कि कौन-सा संस्थान तय शैक्षणिक मानकों पर खरा उतरता है। कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को मान्यता देना या वापस लेना इसी परिषद की जिम्मेदारी होगी। मान्यता से जुड़ी सभी जानकारियां सार्वजनिक की जाएंगी, ताकि पारदर्शिता बनी रहे।
तीसरी है मानक परिषद Standards Council। यह परिषद पढ़ाई के स्तर, सिलेबस, क्रेडिट ट्रांसफर सिस्टम और शिक्षकों की योग्यता से जुड़े मानक तय करेगी। इसका मकसद यह होगा कि छात्रों को एक संस्थान से दूसरे संस्थान में जाने में दिक्कत न हो और शिक्षा की गुणवत्ता समान बनी रहे।
किन संस्थानों पर लागू होगा यह कानून?
यह बिल सभी केंद्रीय और राज्य विश्वविद्यालयों, डीम्ड यूनिवर्सिटी, IIT, NIT, कॉलेजों, ऑनलाइन और दूरस्थ शिक्षा संस्थानों पर लागू होगा। हालांकि मेडिकल, कानून, फार्मेसी और नर्सिंग जैसे पेशेवर कोर्स सीधे इस कानून के दायरे में नहीं आएंगे, लेकिन उन्हें भी नए शैक्षणिक मानकों का पालन करना होगा।
केंद्र सरकार की भूमिका क्या होगी?
केंद्र सरकार इस अधिष्ठान को दिशा-निर्देश दे सकेगी, प्रमुख पदों पर नियुक्तियां करेगी और विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में काम करने की मंजूरी देगी। जरूरत पड़ने पर आयोग या उसकी परिषदों को भंग करने का अधिकार भी सरकार के पास रहेगा। साथ ही, आयोग को हर साल संसद और ऑडिट के सामने जवाबदेह होना होगा।
इससे क्या बदलाव और फायदे होंगे?
सरकार का दावा है कि इससे उच्च शिक्षा अधिक छात्र-केंद्रित बनेगी, नए कॉलेज और कोर्स खोलना आसान होगा और रोजगार से जुड़ी स्किल्स पर जोर दिया जाएगा। शिकायत निवारण प्रणाली मजबूत होगी और छोटे संस्थानों को भी गुणवत्ता सुधार का मौका मिलेगा।
लेकिन विवाद क्यों है?
आलोचकों का कहना है कि यह बिल कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता को कमजोर कर सकता है। उन्हें डर है कि शिक्षा पर केंद्र सरकार का नियंत्रण बढ़ेगा और अकादमिक फैसलों में शिक्षकों व छात्रों की भूमिका घट जाएगी। यह भी आशंका जताई जा रही है कि ग्रामीण और छोटे कॉलेज सख्त नियमों का पालन नहीं कर पाएंगे और बंद होने की कगार पर पहुंच सकते हैं।
विपक्ष की आपत्ति क्या है?
कांग्रेस, टीएमसी और वाम दलों ने इस बिल का विरोध किया है। उनका कहना है कि इतना बड़ा शिक्षा सुधार वाला बिल बिना पर्याप्त चर्चा के पेश किया गया। विपक्षी सांसदों ने इसे संयुक्त संसदीय समिति JPC को भेजने की मांग की थी, जिसे सरकार ने स्वीकार कर लिया है। अब इस बिल पर विस्तृत जांच और चर्चा होगी।
