नई दिल्ली। साल 1975 में तमिल सिनेमा में एक ऐसे कलाकार ने कदम रखा जिसने आने वाले दशकों में भारतीय फिल्म इंडस्ट्री का चेहरा बदल दिया। यह कलाकार कोई और नहीं बल्कि सुपरस्टार रजनीकांत थे-एक ऐसा नाम जिसकी स्टाइल अदाकारी और व्यक्तित्व ने उन्हें ‘थलाइवा’ का दर्जा दिलाया। लेकिन इस महानायक की शुरुआत बेहद साधारण थी। बेंगलुरु में कुली का काम करते हुए और बस कंडक्टर की नौकरी करते हुए वह जिंदगी की जद्दोजहद में उलझे थे लेकिन उनके भीतर एक चमक थी जिसे सबसे पहले उनकी गर्लफ्रेंड ने पहचाना।
रजनीकांत की दोस्ती बैंगलोर में पढ़ने वाली मेडिकल स्टूडेंट निर्मला से हुई। एक प्ले में उनका दमदार अभिनय देखकर निर्मला ने उनसे कहा-आपको हीरो बनना चाहिए। एक्टिंग का जुनून पहले से था इसलिए उन्होंने मद्रास फिल्म इंस्टीट्यूट में दाखिला लेने का फैसला कर लिया। घर की आर्थिक हालत खराब थी लेकिन उनके दोस्त राज बहादुर ने साथ दिया और रजनीकांत का एडमिशन हो गया। वहीं एक्टिंग कोर्स के दौरान मशहूर निर्देशक के. बालाचंदर की नजर उन पर पड़ी। उन्होंने शर्त रखी कि रजनी तमिल भाषा सीख लें तो उन्हें पहली फिल्म का मौका मिलेगा। रजनीकांत ने तेजी से तमिल सीख ली और 1975 में उन्हें अपूर्वा रागंगल में पहला रोल मिला। शुरुआत में खलनायक के किरदार ही मिले लेकिन रजनीकांत के अंदाज ने हर छोटे रोल को यादगार बना दिया। धीरे-धीरे वे दर्शकों के दिलों में जगह बनाने लगे और एक बस कंडक्टर से तमिल सिनेमा के उभरते स्टार बन गए।
करियर के दमदार किरदार
थलपति 1991- – सूर्या
सूर्या का किरदार गरीबी भावनाओं और वफादारी से भरा हुआ था। परिस्थितियों से मजबूर होकर अपराध की दुनिया में जाने वाले इस किरदार को रजनीकांत ने अपने स्टाइल और तीखे संवादों से अमर कर दिया। उनका डायलॉग-
मित्रता का कानून बहुत कठोर है
आज भी फैंस की जुबां पर है।
बाशा 1995- माणिक बाशा
इस फिल्म ने रजनीकांत को ‘मास एंटरटेनर’ का असली खिताब दिया। एक साधारण ऑटो ड्राइवर से गैंगस्टर तक की उनकी यात्रा और उनका प्रसिद्ध डायलॉग-मैं एक बार कह दूं तो यह सौ बार कहने के बराबर है।आज भी तमिल सिनेमा का कल्ट मोमेंट माना जाता है।
शिवाजी: द बॉस 2007- – शिवाजी
एनआरआई इंजीनियर शिवाजी का किरदार समाज सुधार और भ्रष्टाचार विरोध की कहानी कहता है। शंकर के निर्देशन और ए. आर. रहमान के संगीत के साथ रजनी की यह फिल्म ब्लॉकबस्टर साबित हुई।
एंथिरन/रोबोट 2010- वसीकरन और चिट्टी
डबल रोल में रजनीकांत का जलवा अलग ही था। वैज्ञानिक वसीकरन और सुपर-रोबोट चिट्टी का किरदार फैंस को इतना पसंद आया कि यह फिल्म भारतीय सिनेमा के इतिहास की सबसे बड़ी साइंस-फिक्शन फिल्मों में शामिल हो गई।
कबाली 2016- कबाली
एक बूढ़े गैंगस्टर की भावनात्मक कहानी में रजनीकांत ने गजब की गहराई दिखाई। अपने खोए परिवार की तलाश में निकले इस किरदार ने दर्शकों को भावुक कर दिया।
काला 2018- काला
मुंबई की झुग्गियों में गरीबों के हक के लिए लड़ने वाले काला का किरदार सामाजिक संदेशों से भरा था। यह रजनीकांत के सबसे मजबूत राजनीतिक-सामाजिक भूमिकाओं में से एक माना जाता है।
लिंगा 2014- राजा लिंगेश्वरन
ऐतिहासिक और आधुनिक दोनों भूमिकाओं में रजनीकांत ने दोहरा जादू दिखाया। राजा का संवाद-मुझे अपना शहर देश संस्कृति और भगवान पसंद है… बहुत चर्चित रहा।
दरबार 2020- आदित्य अरुणाचलम
कानून तोड़कर भी न्याय दिलाने वाले इस आक्रामक पुलिस ऑफिसर का किरदार रजनीकांत की मास अपील को फिर साबित करता है।
फैंस की दीवानगी के किस्से
रजनीकांत की लोकप्रियता सिर्फ सिनेमा तक सीमित नहीं। वे अपने फैंस के दिलों में देवता की तरह बसते हैं। 2017 में एक फैन ने उनकी अनुपस्थिति की खबर सुनकर जहर खा लिया था। एक कैंसर पीड़ित फैन फिल्म लिंगा देखने चोरी-छिपे थिएटर पहुंचा और वहीं उसकी मौत हो गई। 2021 में रजनीकांत के स्वस्थ होने पर फैंस ने 108 नारियल फोड़कर उनका आभार जताया।
संघर्ष और वापसी की कहानी
रजनीकांत की शुरुआत संघर्षों से भरी थी। पिता के रिटायरमेंट के बाद घर चलाने की जिम्मेदारी उन पर आ गई जिसके लिए उन्होंने कुली का काम किया फिर बस कंडक्टर बने। इसी दौरान उन्होंने प्ले करना शुरू किया और उनकी पहचान बढ़ने लगी। 70 के दशक के आखिर में जब उनकी कई फिल्में फ्लॉप हुईं तो उन्होंने एक्टिंग छोड़ने का फैसला कर लिया। लेकिन तभी उन्हें अमिताभ बच्चन की डॉन की तमिल रीमेक बिल्ला मिली और यह फिल्म सुपरहिट हुई। रजनीकांत ने अपनी वापसी कुछ ऐसे की कि वे तमिल सिनेमा के सबसे बड़े स्टार बन गए। पहले 10 सालों में ही 100 फिल्में करने का उनका रिकॉर्ड आज भी चकित कर देता है। रजनीकांत का सफर सिर्फ सफलता की कहानी नहीं बल्कि संघर्ष दृढ़ता और स्टाइल का ऐसा मेल है जिसने उन्हें सिनेमा का ‘थलाइवा’ बनाया। 75 साल की उम्र में भी उनकी चमक पहले जैसी है-और उनका स्टारडम आज भी दुनिया भर में लोगों को प्रेरित करता है।