वाहनों पर सबसे पहला वार
चीन की रणनीति का पहला और सबसे अहम कदम था वाहन उत्सर्जन पर सख्त नियंत्रण। बीजिंग में यूरोपियन मानकों के बराबर कड़े उत्सर्जन नियम लागू किए गए। पुराने और ज्यादा धुआं छोड़ने वाले वाहनों को चरणबद्ध तरीके से सड़कों से हटाया गया। निजी वाहनों की संख्या सीमित करने के लिए लाइसेंस प्लेट लॉटरी सिस्टम ऑड-ईवन जैसी योजनाएं और सप्ताह के कुछ तय दिनों में गाड़ी चलाने पर रोक लगाई गई।इसके साथ-साथ सार्वजनिक परिवहन को मजबूत किया गया। मेट्रो और बस नेटवर्क का बड़े पैमाने पर विस्तार हुआ और इलेक्ट्रिक वाहनों को तेजी से बढ़ावा दिया गया। आज बीजिंग में इलेक्ट्रिक बसों और टैक्सियों की संख्या लाखों में है जिससे प्रदूषण पर सीधा असर पड़ा।
उद्योगों पर सख्त फैसला
बीजिंग में प्रदूषण का बड़ा स्रोत भारी उद्योग भी थे। चीन ने इस मोर्चे पर भी कोई नरमी नहीं दिखाई। शहर से 3000 से अधिक बड़ी और प्रदूषण फैलाने वाली फैक्ट्रियों को या तो बंद कराया गया या फिर शहर से बाहर स्थानांतरित किया गया। देश की बड़ी स्टील कंपनी शौगांग को हटाने से ही हवा में खतरनाक कणों में लगभग 20 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई।दिलचस्प बात यह है कि जिन इलाकों में पहले फैक्ट्रियां थीं वहां अब पार्क व्यावसायिक क्षेत्र और तकनीकी हब विकसित किए गए। शौगांग का पुराना औद्योगिक परिसर 2022 के शीतकालीन ओलंपिक का प्रमुख स्थल बना जो पर्यावरणीय बदलाव का प्रतीक बन गया।
क्षेत्रीय सहयोग बना गेमचेंजर
चीन ने सिर्फ बीजिंग तक सीमित रहकर कदम नहीं उठाए। आसपास के 26 शहरों को साथ लेकर साझा प्रदूषण नियंत्रण रणनीति अपनाई गई। कोयले का उपयोग न केवल उद्योगों में बल्कि घरों में भी चरणबद्ध तरीके से खत्म किया गया। स्वच्छ ईंधन और गैस आधारित प्रणालियों को बढ़ावा दिया गया।
भारत के लिए क्या सीख?
भारत में भी स्वच्छ ईंधन निजी वाहनों पर नियंत्रण और सार्वजनिक परिवहन को मजबूत करने पर लंबे समय से चर्चा होती रही है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की विशेषज्ञ अनुमिता रॉय चौधरी का कहना है कि फर्क नीति के इरादे और उसके पैमाने का है। चीन ने सालभर सख्ती बरती जबकि दिल्ली में अधिकतर कदम आपात स्थिति में ही उठाए जाते हैं।विशेषज्ञ मानते हैं कि दिल्ली में उद्योगों को पूरी तरह हटाना मुश्किल है लेकिन बेहतर तकनीक साझा प्रदूषण नियंत्रण व्यवस्था और लगातार निगरानी से हालात सुधारे जा सकते हैं। बीजिंग का अनुभव बताता है कि अगर इच्छाशक्ति मजबूत हो और नीतियां लंबी अवधि की हों तो प्रदूषण जैसे जटिल संकट पर भी काबू पाया जा सकता है।
