याचिका में यह दावा किया गया था कि 1985 से यह भूमि मध्य प्रदेश वक्फ बोर्ड की संपत्ति है और अधिग्रहण के समय उचित मुआवजा पुनर्वास और सामाजिक प्रभाव आकलन की प्रक्रिया पूरी नहीं की गई। याचिकाकर्ता ने कहा कि महाकाल मंदिर के विस्तार के लिए भूमि का अधिग्रहण सार्वजनिक उद्देश्य के अंतर्गत नहीं आता और इससे संविधान के अनुच्छेद 14 25 26 और 300-A का उल्लंघन होता है।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता के इन तर्कों को खारिज करते हुए कहा कि इस मामले में पहले से वैकल्पिक कानूनी उपाय उपलब्ध थे और याचिकाकर्ता केवल मुआवजे की आपत्ति ही उठा सकता था। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि वह भूमि अधिग्रहण की वैधता पर विचार नहीं करेगा क्योंकि याचिकाकर्ता भूमि का मालिक नहीं है।
इससे पहले मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने भी महाकाल लोक फेज-2 परियोजना से जुड़ी मुआवजे को चुनौती देने वाली याचिकाएं खारिज कर दी थीं। हाई कोर्ट ने कहा था कि याचिकाकर्ता न तो भू-स्वामी हैं और न ही टाइटल होल्डर इसलिए वे केवल मुआवजे के संदर्भ में सवाल उठा सकते हैं। इस फैसले से महाकाल लोक फेज-2 परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण को कानूनी मंजूरी मिल गई है। यह परियोजना महाकाल मंदिर परिसर के विस्तार और सार्वजनिक स्थलों के पुनर्विकास का हिस्सा है जिसे बड़ी धार्मिक और सांस्कृतिक महत्वता प्राप्त है।