वर्ल्ड चैंपियन बनीं MP की ब्लाइंड बेटियां, लेकिन सम्मान से वंचित: न नौकरी, न इनाम-क्यों हो रहा दिव्यांग खिलाड़ियों से भेदभाव?


मध्य प्रदेश।  भारत ने जब पहला ब्लाइंड विमेंस टी-20 वर्ल्ड कप जीता तो यह सिर्फ एक खेल जीत नहीं थी बल्कि जज़्बे संघर्ष औरआत्मनिर्भरता की ऐतिहासिक कहानी थी। इस जीत में मध्य प्रदेश की तीन बेटियों-सुनीता सराठे नर्मदापुरम सुषमापटेल दमोह और दुर्गा येवले बैतूल-ने अहम भूमिका निभाई। लेकिन विडंबना देखिए कि वर्ल्ड चैंपियन बनने के बावजूदइन बेटियों को अपने ही राज्य में अब तक न सम्मान मिला न पुरस्कार और न ही नौकरी की कोई घोषणा।इस ऐतिहासिक टूर्नामेंट में भारतीय टीम पूरे सफर में अजेय रही। फाइनल मुकाबले में भारत ने नेपाल को 7 विकेट सेहराकर ट्रॉफी पर कब्जा जमाया। खास बात यह रही कि जीत दिलाने वाले प्रदर्शन में MP की बेटियों का योगदान निर्णायक था। इसके बावजूद राज्य सरकार की चुप्पी अब सवालों के घेरे में है।

दूसरे राज्यों ने बढ़ाया मान MP पीछे क्यों?
जहां ओडिशा सरकार ने अपनी खिलाड़ियों को 11 लाख रुपए और सरकारी नौकरी कर्नाटक ने 10 लाख रुपए और नौकरीऔर आंध्र प्रदेश ने 15 लाख रुपए देने की घोषणा की वहीं मध्य प्रदेश सरकार की ओर से अब तक कोई आधिकारिक ऐलान नहीं हुआ। हैरानी की बात यह है कि इन तीनों खिलाड़ियों का आंध्र प्रदेश में भव्य सम्मान हुआ। वहां के डिप्टी सीएम पवन कल्याण ने प्रत्येक खिलाड़ी को 5-5 लाख रुपए की पुरस्कार राशि दी। यानी दूसरे राज्य ने MP की बेटियों को वह सम्मान दिया जो उनका अपना राज्य नहीं दे सका।

क्रांति को फोन आया इन बेटियों को अपॉइंटमेंट भी नहीं
क्रिकेट एसोसिएशन फॉर द ब्लाइंड मध्य प्रदेश के जनरल सेक्रेटरी और कोच सोनू गोलकर ने नाराज़गी जताते हुए कहा कि जब महिला क्रिकेटर क्रांति गौड़ वर्ल्ड कप जीतकर लौटीं तो नेताओं के फोन आए घोषणाएं हुईं। लेकिन इन दिव्यांग बेटियों के लिए एक अपॉइंटमेंट तक नहीं मिल रहा।गोलकर ने सवाल उठाया- क्या ये बेटियां सिर्फ इसलिए नजरअंदाज की जा रही हैं क्योंकि ये दिव्यांग हैं? अगर सम्मान नहीं मिला तो यह सीधा भेदभाव है। खिलाड़ियों का दर्द: फोन पर बधाई मिली मिलने कोई नहीं आया वर्ल्ड कप में सबसे ज्यादा विकेट लेने वाली ऑलराउंडर सुनीता सराठे कहती हैं मैंने दो विकेट लिए छह रन आउट किए लेकिन सरकार ने न बुलाया न सम्मानित किया। विधायक-सांसदों ने फोन पर बधाई दी पर मिलने कोई नहीं आया। दुर्गा येवले बताती हैं कि उन्होंने तीन रन आउट और दो स्टंपिंग की फिर भी सरकार की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। हम गांव से हैं परिवार हम पर निर्भर है। अगर नौकरी मिल जाए तो ज़िंदगी बदल सकती है।

सुषमा पटेल का कहना है-
यह हमारा पहला वर्ल्ड कप था और हम ट्रॉफी लेकर लौटे। सामान्य खिलाड़ियों को तुरंत सम्मान मिलता है लेकिन हमारे साथ भेदभाव क्यों? दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए अलग स्पोर्ट्स पॉलिसी की मांग कोच सोनू गोलकर का कहना है कि जब तक दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए अलग और ठोस स्पोर्ट्स पॉलिसी नहीं बनेगी तब तक ऐसी अनदेखी होती रहेगी। अगर क्रांति गौड़ के लिए खजाना खुल सकता है तो इन बेटियों के लिए क्यों नहीं? अब सवाल साफ है-क्या वर्ल्ड चैंपियन बनना भी दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए काफी नहीं? क्या सम्मान सिर्फ कुछ चुनिंदा चेहरों तक सीमित है?