मीडिया से बातचीत के दौरान शशि थरूर ने कहा कि भारत में सिनेमा और रचनात्मक स्वतंत्रता की एक समृद्ध परंपरा रही है। उन्होंने याद दिलाया कि देश में गोवा और केरल जैसे राज्यों में वर्षों से अंतरराष्ट्रीय स्तर के फिल्म फेस्टिवल आयोजित होते रहे हैं जिन्हें दुनियाभर में सम्मान की नजर से देखा जाता है। ऐसे में फिल्मों की स्क्रीनिंग पर रोक लगाना न केवल कलाकारों के साथ अन्याय है बल्कि भारत की सांस्कृतिक पहचान पर भी सवाल खड़े करता है।थरूर ने कहा यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण घटना है। हमारे देश में सिनेमाई संस्कृति का हमेशा सम्मान किया गया है। लेकिन आज स्थिति यह है कि फिल्मों की एक सूची को सीमित कर दिया गया है और कुछ फिल्मों को बिना ठोस वजह के रोका जा रहा है। किसी भी फिल्म को इस तरह से नहीं रोका जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि पहले जिन फिल्मों को बैन किया गया या जिन्हें मंजूरी नहीं दी गई उनके पीछे दिए गए कारण अक्सर हास्यास्पद रहे हैं।
कांग्रेस सांसद ने नौकरशाही की भूमिका पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि अधिकारियों को ज्यादा समझदारी और संवेदनशीलता दिखानी चाहिए क्योंकि ऐसे फैसलों का असर केवल एक फेस्टिवल तक सीमित नहीं रहता। थरूर के मुताबिक जब अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की रचनात्मक स्वतंत्रता पर सवाल उठते हैं तो इससे देश की छवि को गंभीर नुकसान होता है।इससे पहले सोशल मीडिया पर भी शशि थरूर ने अपनी नाराजगी जाहिर की थी। उन्होंने ट्वीट कर कहा था कि तिरुवनंतपुरम में आयोजित केरल इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में दिखाई जाने वाली 19 फिल्मों को केंद्र सरकार द्वारा मंजूरी न दिए जाने से एक अजीब और अनावश्यक विवाद खड़ा हो गया है। उनका कहना था कि यह फैसला कला और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की भावना के खिलाफ है।
केवल कांग्रेस ही नहीं बल्कि केरल सरकार ने भी केंद्र सरकार के इस फैसले का कड़ा विरोध किया है। मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने साफ शब्दों में कहा कि IFFK में तय फिल्मों की स्क्रीनिंग की अनुमति न देना अस्वीकार्य है। उन्होंने इसे रचनात्मक स्वतंत्रता पर सीधा हमला बताया और कहा कि इस तरह के कदम लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ हैं। मुख्यमंत्री ने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा कि फिल्म फेस्टिवल में लगाई गई सेंसरशिप मौजूदा केंद्र सरकार के तानाशाही रवैये को दर्शाती है। उनके मुताबिक यह सरकार देश में विरोध की आवाजों और अलग-अलग रचनात्मक अभिव्यक्तियों को दबाने की कोशिश कर रही है। पिनाराई विजयन ने यह भी स्पष्ट किया कि जागरूक केरल ऐसे किसी भी दबाव के आगे झुकने वाला नहीं है।
राज्य सरकार ने यह ऐलान किया है कि जिन फिल्मों को केंद्र सरकार ने अनुमति नहीं दी थी उन्हें फिर भी फेस्टिवल में दिखाया जाएगा। केरल सरकार का मानना है कि सिनेमा केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं है बल्कि यह समाज के सवालों विचारों और सच्चाइयों को सामने लाने का एक सशक्त जरिया है। IFFK से जुड़ा यह विवाद अब केवल फिल्मों तक सीमित नहीं रह गया है बल्कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता केंद्र और राज्य के रिश्तों और भारत की सांस्कृतिक पहचान जैसे बड़े मुद्दों से जुड़ गया है। शशि थरूर और केरल सरकार के बयानों के बाद यह साफ हो गया है कि आने वाले दिनों में यह मामला और गहराने वाला है।
