Author: bharati

  • पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में पहुंचे नॉर्वे के राजदूत, शहबाज सरकार ने भेजा समन

    पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में पहुंचे नॉर्वे के राजदूत, शहबाज सरकार ने भेजा समन


    नई दिल्‍ली । पाकिस्तान (Pakistan)के सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) की एक सुनवाई में नॉर्वे के राजदूत अल्बर्ट इलसास(Ambassador Albert Ilsas) भी पहुंच गए। इससे पाकिस्तानी सरकार इतना भड़क गई कि इलसास को समन भेज दिया गया। जानकारी के मुताबिक मानवाधिकार से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान नॉर्वे के राजदूत सुप्रीम कोर्ट में मौजूद थे। ऐक्टिविस्ट इणान जैनब मजारी और उनके पति हादी अली चत्ता की सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही थी।

    पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने इलसास को समन किया है और कहा है कि देश के आंतरिक मामलों में दखल देना उचित नहीं है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ताहिर अंदराबी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में उपस्थित होकर नॉर्वे के राजदूत ने अंतरराष्ट्रीय कानूनों और डिप्लोमैटिक प्रोटोकॉल का उल्लंघन किया है।

    अंदराबी ने कहा, उन्होंने जो कुछ भी किया है उसे देश के आंतरिक मामलों में दखल माना जा रहा है। किसी भी देश के राजदूत से उम्मीद की जाती है कि वह विएना कन्वेंशन के नियमों का पालन करे। वहीं इमान ने राजदूत का पक्ष लेते हुए कहा है कि राजदूत का सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के दौरान उपस्थित रहना यह कतई नहीं दिखाता है कि वह किसी पक्ष में थे। यह एक आम बात है, हालांकि पाकिस्तान की सरकार एक राजदूत की छवि खराब करने की कोशिश कर रही है।

    बता दें कि इमान और उनके पति के खिलाफ पाकिस्तान के इलेक्ट्रॉनिक ऐक्ट 2016 के तहत केस दर्ज किया गया है। इस्लामाबाद हाई कोर्ट में उन्होंने अंतरिम राहत के लिए अपील की थी। उनकी याचिका खारिज हो गई। इसके बाद दंपती ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है।

  • 1000 करोड़ का क्रिप्टो घोटाला: CBI ने चीनी मास्टरमाइंड सहित 30 आरोपियों के खिलाफ दाखिल की चार्जशीट

    1000 करोड़ का क्रिप्टो घोटाला: CBI ने चीनी मास्टरमाइंड सहित 30 आरोपियों के खिलाफ दाखिल की चार्जशीट


    नई दिल्‍ली । केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने 1000 करोड़ रुपये से अधिक के क्रिप्टोकरेंसी(Cryptocurrency) निवेश घोटाले में दो चीनी नागरिकों वान जून और ली अनमिंग सहित कुल 30 आरोपियों के खिलाफ दिल्ली की विशेष अदालत में आरोपपत्र दाखिल कर दिया है। यह मामला कोविड लॉकडाउन(Covid Lockdown) के दौरान फर्जी ‘एचपीजेड टोकन’ (‘HPZ Token’)ऐप के जरिए लोगों को लुभाकर बिटकॉइन माइनिंग के नाम पर ठगने से जुड़ा है। जांच में पता चला है कि यह घोटाला विदेशी साइबर अपराधी गिरोह का हिस्सा था, जिसने भारत की नई-नई शुरू हुई पेमेंट एग्रीगेटर (Payment Aggregator)व्यवस्था का भी हेराफेरी कर बड़े पैमाने पर धन विदेश भेजा।

    दरअसल, यह पूरा घोटाला कथित तौर पर चीनी नागरिकों द्वारा नियंत्रित कंपनी शिगू टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड ने चलाया था। बताया गया कि कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान इस गिरोह ने बड़ी मात्रा में पैसा इकट्ठा किया और उसे हेराफेरी कर विदेश भेज दिया। कुछ ही महीनों में 150 से ज्यादा फर्जी कंपनियों के बैंक खातों में 1000 करोड़ रुपये से अधिक की राशि जमा हो गई थी। ये खाते अपराध से कमाए धन को इकट्ठा करने और उसे वैध दिखाने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे थे।

    सीबीआई जांच में सामने आया है कि यह विदेशी नागरिकों द्वारा संचालित एक बड़े और सुनियोजित साइबर अपराध नेटवर्क का हिस्सा था। यही गिरोह कोविड के बाद के समय में कई अन्य घोटालों के लिए भी जिम्मेदार था, जिनमें फर्जी लोन ऐप, फर्जी निवेश स्कीम और फर्जी ऑनलाइन जॉब ऑफर के जरिए भारतीय नागरिकों को ठगा गया। जांच में पता चला कि ठगों ने लोगों का विश्वास जीतने के लिए शुरुआती निवेश पर कुछ रिटर्न भी दिए, लेकिन बाद में पूरी राशि क्रिप्टोकरेंसी में बदलकर विदेश भेज दी।

    सीबीआई जांच में ये भी पता चला कि मुख्य आरोपी चीनी नागरिक वान जून की पहचान जिलियन कंसल्टेंट्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (एक चीनी संस्था की सहायक कंपनी) के प्रमुख निदेशक के तौर पर हुई। उसने डॉर्टसे नामक एक व्यक्ति की मदद से शिगू टेक्नोलॉजी सहित कई शेल कंपनियां बनाईं। बाद में सीबीआई में डॉर्टसे को भी गिरफ्तार कर लिया था।

    सीबीआई की चार्जशीट में मुख्य साजिशकर्ताओं समेत 27 व्यक्ति और 3 कंपनियों को जिम्मेदार ठहराया गया है। वहीं गिरोह के कई सदस्य अभी भी सीबीआई की पहुंच से बाहर हैं। फिलहाल उनकी तलाश और जांच जारी है। बता दें कि एजेंसी ने पिछले साल अप्रैल में इस मामले में FIR दर्ज की थी। इससे पहले प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने जांच शुरू की और विभिन्न बैंक खातों में जमा 91.6 करोड़ रुपये फ्रीज कर दिए थे।

  • पर्सनल लॉ बोर्ड ने किरेन रीजीजू से की मुलाकात, वक्फ संपत्तियों के 'उम्मीद' पोर्टल की दिक्कतों को दूर करने की मांग

    पर्सनल लॉ बोर्ड ने किरेन रीजीजू से की मुलाकात, वक्फ संपत्तियों के 'उम्मीद' पोर्टल की दिक्कतों को दूर करने की मांग


    नई दिल्‍ली । ऑल इंडिया (All India)मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और सांसदों के एक प्रतिनिधिमंडल ने बृहस्पतिवार (Thursday)को केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरेन रीजीजू(Kiren Rijiju) से मुलाकात कर आग्रह किया कि वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण से संबंधित ‘उम्मीद’ पोर्टल से जुड़ी दिक्कतों को दूर करने के साथ ही दस्तावेजों के अपलोड की समयसीमा एक साल के लिए और बढ़ाई जाए। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के कुछ पदाधिकारियों के साथ ही सांसद असदुद्दीन ओवैसी, मोहम्मद जावेद और चंद्रशेखर भी रीजीजू से मिले।

    रीजीजू ने सोशल मीडिया एक्स पर पोस्ट किया कि आज मेरे कार्यालय में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रतिनिधिमंडल के साथ बातचीत हुई। हमने उम्मीद पोर्टल में वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण से संबंधित मुद्दों पर चर्चा की और विचारों का सुखद आदान-प्रदान किया।

    वहीं, बोर्ड ने एक बयान में कहा कि पंजीकृत वक्फ संपत्तियों को अपलोड करने के लिए निर्धारित छह महीने की समय सीमा बेहद कम थी। पोर्टल पर विवरण अपलोड करते समय कई तकनीकी समस्याओं और गड़बड़ियों का सामना करना पड़ा। इसलिए, सभी संपत्तियों को अपलोड करना बेहद कठिन और व्यावहारिक रूप से असंभव हो गया। नतीजतन, पंजाब वक्फ बोर्ड, मध्य प्रदेश वक्फ बोर्ड, गुजरात वक्फ बोर्ड और राजस्थान वक्फ बोर्ड ने समय बढ़ाने की मांग करते हुए न्यायाधिकरण से संपर्क किया और न्यायाधिकरण ने समयसीमा बढ़ा दी।

    उसका कहना है कि इससे स्पष्ट रूप से पता चलता है कि वक्फ बोर्ड भी छह महीने की समयसीमा का पालन करने में असमर्थ थे और उन्हें अधिक समय का अनुरोध करना पड़ा। उसने कहा कि प्रतिनिधिमंडल ने अनुरोध किया कि मुतवल्लियों के सामने आने वाली कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए अपलोड करने की समयसीमा एक वर्ष और बढ़ा दी जाए।

    कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद ने बताया कि हमने मंत्री के समक्ष उम्मीद पोर्टल से जुड़ी समस्याओं को रखा और उन्होंने आश्चासन दिया कि दिक्कतों को दूर किया जाएगा। उन्होंने कहा कि पोर्टल से संबंधित दिक्कतों को दूर किया जाना बहुत जरूरी है क्योंकि अब तक लाखों वक्फ संपत्तियों का पंजीकरण नहीं हो सका है।

  • मोदी राज में गरीबी लगभग खत्म, अब मुस्लिमों से ज्यादा गरीब हिंदू: नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष का रिसर्च

    मोदी राज में गरीबी लगभग खत्म, अब मुस्लिमों से ज्यादा गरीब हिंदू: नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष का रिसर्च


    नई दिल्‍ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi)के शासनकाल में बड़े पैमाने पर अत्यधिक गरीबी (Extreme Poverty) खत्म हुई है। बड़ी बात यह है कि अत्यधिक गरीबी खत्म होने की दर हिन्दुओं से ज्यादा मुस्लिमों में रही है। यानी अब मुस्लिमों से ज्यादा गरीब हिन्दू हैं। नीति आयोग के पूर्व अध्यक्ष और सोलहवें वित्त आयोग के अध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया(Arvind Panagariya) ने अपने एक रिसर्च पेपर में यह दावा किया है। रिपोर्ट के मुताबिक, 2011-12 और 2023-24 के बीच भारत ने लगभग अत्यधिक गरीबी खत्म कर दी है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मुसलमानों में गरीबी दर (उनकी आबादी का) 1.5% रह गया है, जबकि हिंदुओं में यह 2.3% है जो कि तुलना में थोड़ा ज्यादा है।

    कोलंबिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और सोलहवें वित्त आयोग के चेयरमैन अरविंद पनगढ़िया और नई दिल्ली स्थित रिसर्च और कंसल्टिंग फर्म इंटेलिंक एडवाइजर्स के संस्थापक विशाल मोरे द्वारा लिखे गए एक नए पेपर में यह दावा किया गया है। पेपर इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली में प्रकाशित हुआ है। पेपर के अनुसार, वर्ष 2022-23 में भी दोनों समुदायों के बीच गरीबी का अंतर लगभग एक समान था। उस दौरान मुसलमानों में गरीबी दर उनकी आबादी का 4% था, जबकि हिंदुओं में यह 4.8% था, जो 0.8 प्रतिशत ज्यादा है।

    आंकड़े आम धारणा के विपरीत
    पेपर में यह भी दावा किया गया है कि ये आंकड़े उस आम धारणा के विपरीत हैं जिसके तहत कहा जाता रहा है कि मुसलमानों में हिंदुओं की तुलना में ज्यादा गरीबी है और इसमें सुधार की जरूरत है, कम से कम अत्यधिक गरीबी के संबंध में। बता दें कि विश्व बैंक क्रय शक्ति समानता (PPP) के संदर्भ में प्रति व्यक्ति प्रति दिन 3 डॉलर से कम खरीद क्षमता को अत्यधिक गरीबी के रूप में परिभाषित किया जाता है। लेखकों के अनुसार, यह तेंदुलकर कमेटी की गरीबी रेखा के करीब है, जो आखिरी आधिकारिक तौर पर अपनाई गई गरीबी रेखा थी।

    देश से लगभग अत्यधिक गरीबी खत्म
    एक रिपोर्ट के मुताबिक, यह पेपर सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक समूहों, और ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में, राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर गरीबी के स्तर का अनुमान लगाता है। इसमें लेखकों ने लिखा है, “अनुमान बताते हैं कि 2011-12 से 2023-24 तक 12 वर्षों में गरीबी में गिरावट काफी और व्यापक रही है, इस हद तक कि देश ने लगभग अत्यधिक गरीबी खत्म कर दी है।”

    लेखकों के अनुसार, तेंदुलकर पद्धति के आधार पर राष्ट्रीय (ग्रामीण+शहरी) गरीबी रेखा 2011-12 में प्रति व्यक्ति प्रति माह 932 रुपये, 2022-23 में 1,714 रुपये और 2023-24 में 1,804 रुपये निर्धारित की गई थी। इस पेपर में, हर घर को राज्य और इलाके (ग्रामीण या शहरी) के लिए गरीबी रेखा के आधार पर गरीब या गैर-गरीब माना गया है। जिन्हें गरीब के तौर पर क्लासिफाई किया गया है, उन्हें फिर ग्रुप के हिसाब से जोड़ा गया है।

    2011-2024 के बीच कुल गरीबी में तेज़ और लगातार गिरावट
    पेपर के अनुसार, 2011-2024 की अवधि में कुल गरीबी में तेज़ और लगातार गिरावट देखी गई है। पेपर में दावा किया गया है कि राष्ट्रीय गरीबी दर 2011-12 में 21.9% (आबादी का) से घटकर 2023-24 में 2.3% हो गई। यानी 12 सालों में गरीबी दर में 19.7 प्रतिशत अंकों की गिरावट आई है, जो प्रति वर्ष के हिसाब से 1.64 प्रतिशत की गिरावट है।

    रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि शहरी इलाकों की तुलना में ग्रामीण इलाकों में गिरावट ज़्यादा तेज़ रही है। ररिपोर्ट के मुताबिक, ग्रामीण इलाकों में जहां 2011-12 में शुरुआती गरीबी का स्तर राष्ट्रीय औसत से ज़्यादा था, उस अवधि में 22.5 प्रतिशत अंकों की कमी आई, या सालाना 1.87 प्रतिशत अंकों की कमी आई। इसके विपरीत, शहरी गरीबी में 12.6 प्रतिशत अंकों की गिरावट आई, जो मोटे तौर पर प्रति वर्ष 1 प्रतिशत अंक के बराबर है। पेपर में ये भी कहा गया है कि वर्ग के हिसाब से भी, सभी प्रमुख सामाजिक समूहों – अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), और अगड़ी जाति के समूहों में भी गरीबी में काफी कमी आई है।

    ST समुदाय में भी गरीबी दर 8.7% रह गई
    लेखकों ने इस बात पर फोकस किया है कि समाज के सबसे निचले पायदान पर रहने वाले अनुसूचित जनजाति समुदाय के अंदर 2023-24 में गरीबी घटकर 8.7% रह गई है। पेपर में कहा गया है कि जहां हिंदुओं में गरीबी की दर 2.3% अनुमानित है, वहीं मुसलमानों में अब 1.5%, ईसाइयों में 5%, बौद्धों में 3.5%, और सिखों और जैनियों में 0% है। रिपोर्ट में यह दावा कि हिंदुओं और मुसलमानों के बीच अत्यधिक गरीबी में अंतर लगभग खत्म हो गया है, हैरान करने वाला है।

    पेपर में कहा गया है कि ग्रामीण इलाकों में भी हिंदुओं की तुलना में मुसलमान कम ही गरीबी रेखा के नीचे हैं। यह आंकड़ा मुस्लिमों में 1.6% है जबकि हिन्दुओं में 2.8% है। हालांकि, शहरी इलाकों में 2011-12 में मुसलमानों में गरीबी दर 20.8% थी, जबकि हिंदुओं में यह 12.5% ​​थी, जो 2023-24 तक घटकर अब क्रमशः 1.2% और 1% रह गई है।

  • हिमंत बिस्वा सरमा का तंज, कहा- मैं भूल गया कांग्रेस से आया हूं, कट्टर भाजपाई बनने का रहता है प्रयास

    हिमंत बिस्वा सरमा का तंज, कहा- मैं भूल गया कांग्रेस से आया हूं, कट्टर भाजपाई बनने का रहता है प्रयास


    नई दिल्‍ली । असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा (Himanta Biswa Sarma)ने कांग्रेस पर एकबार फिर तंज कसा है। उन्होंने कहा कि वह कट्टर भाजपाई (Hardcore BJP)बनने की कोशिश करते रहते हैं। हाल ही में एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा कि वह भूल गए हैं कि वह कांग्रेस से भाजपा (BJP)में आए थे। उन्होंने साल 2015 में कांग्रेस को अलविदा कह दिया था। इसके बाद वह भाजपा में शामिल हो गए थे।

    सरमा से जब पूछा गया कि सिर्फ असम नहीं, बल्कि भारत के कई राज्यों में आप भाजपा के गो टू मैन बन गए हैं, अब तो कोई यकीन भी नहीं करता कि आप कांग्रेस से आए हैं। आज तक के कार्यक्रम में पूछे गए इस सवाल का जवाब मजाकिया अंदाज में दिया।

    उन्होंने कहा, ‘मैं भी भूल गया हूं।’ उन्होंने आगे कहा, ‘सबको भूल जाना चाहिए।’ उन्होंने कहा, ‘बीजेपी से ज्यादा तो बीजेपी नहीं हो सकता पर अच्छा बीजेपी होने की कोशिश करता हूं। पूरा कट्टर बीजेपी बन जाऊं, उसका प्रयास तो होता रहता है।’

    क्यों छोड़ी कांग्रेस
    सरमा ने साल 2015 में कांग्रेस छोड़ दी थी। उन्होंने कांग्रेस पर परिवारवाद की राजनीति के आरोप लगाए थे। उन्होंने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तरुण गोगोई पर भी गंभीर आरोप लगाए थे। एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा था कि जब से उनके बेटे गौरव गोगोई राजनीति में आए हैं, तब से वह मतलबी हो गए है। खास बात है कि वह कांग्रेस में रहते हुए मंत्री बने थे। वहीं, भाजपा में आने के बाद वह मंत्री बने और बाद में असम के मुख्यमंत्री का पद भी संभाला।

    असम की सुरक्षा के लिए सामुदायिक रक्षा तंत्र तैयार करें: हिमंत
    गुरुवार को सरमा ने लोगों से अपील की कि वे राज्य की सुरक्षा के लिए सामुदायिक स्तर पर मिलकर रक्षा तंत्र तैयार करें। सरमा ने लोगों से आग्रह किया कि वे उन लोगों का सामाजिक और आर्थिक रूप से बहिष्कार करें जो कथित तौर पर सरकारी भूमि पर अतिक्रमण करते हैं।

    मुख्यमंत्री ने संवाददाताओं से कहा, ‘हमें उन्हें (जो लोग अतिक्रमण करते हैं) आने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। लेकिन अगर वे ऊपरी असम के कुछ स्थानों पर पहले से ही मौजूद हैं, तो हम उन्हें वहां से हटा देंगे, जैसा हमने उरीयमघाट में किया था।’

    राज्य सरकार ने नगालैंड के साथ राज्य की सीमा पर उरीयमघाट में रेंगमा संरक्षित वन में बड़े पैमाने पर बेदखली अभियान चलाया, जिसमें लगभग 11,000 बीघे (लगभग 1,500 हेक्टेयर) भूमि को अतिक्रमण से मुक्त कराया गया। इस अभियान में लगभग 1,800 परिवार प्रभावित हुए, जिनमें अधिकतर मुस्लिम समुदाय के थे। उन्होंने कहा कि सरकार अकेले असम को ‘सुरक्षित’ नहीं बना सकती है। सभी को उस प्रक्रिया में योगदान देना होगा।

  • बांग्लादेश में चुनावी तारीख घोषित, शेख हसीना की पार्टी ने किया खारिज, कहा- यूनुस के बस की बात नहीं

    बांग्लादेश में चुनावी तारीख घोषित, शेख हसीना की पार्टी ने किया खारिज, कहा- यूनुस के बस की बात नहीं


    नई दिल्‍ली । पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना(Sheikh Hasina) की पार्टी बांग्लादेश अवामी लीग ने 12 फरवरी, 2026 के लिए घोषित चुनावी तारीख को पूरी तरह से खारिज कर दिया है। आवामी लीग ने बांग्लादेश(Bangladesh) चुनाव आयोग के इस कदम को गैर-कानूनी बताया है। पार्टी ने कहा कि नोबेल पुरस्कार विजेता और मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस(Muhammad Yunus) के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार एक किलर-फासीस्ट(killer-fascist) गिरोह की तरह काम कर रही है, जो किसी भी हाल में स्वतंत्र, निष्पक्ष और सहभागी चुनाव नहीं करा सकती।

    अवामी लीग का कड़ा बयान
    गुरुवार को जारी एक तीखे बयान में पार्टी ने कहा कि उसने गैरकानूनी, कब्जाधारी, हत्यारे-फासीस्ट यूनुस गिरोह के गैरकानूनी निर्वाचन आयोग द्वारा घोषित चुनाव कार्यक्रम का गहन अध्ययन किया है और यह स्पष्ट है कि मौजूदा प्रशासन पूरी तरह पक्षपाती है। पार्टी के अनुसार उनके नियंत्रण में पारदर्शिता, निष्पक्षता और जनता की इच्छा का प्रतिबिंब सुनिश्चित करना असंभव है।

    अवामी लीग ने अपने बयान में कहा- यह अब स्पष्ट है कि मौजूदा कब्जाधारी सत्ता पूरी तरह पक्षपाती है और उनके नियंत्रण में सामान्य, स्वतंत्र और निष्पक्ष माहौल संभव नहीं। चुनाव जनता की लोकप्रियता का पैमाना हैं। अवामी लीग एक चुनाव-उन्मुख पार्टी है और जनता के सामने खड़े होने की क्षमता, साहस और ताकत रखती है।

    ऐतिहासिक भूमिका और चुनावी विरासत का उल्लेख
    अवामी लीग ने जोर देकर कहा कि अपनी स्थापना से लेकर अब तक उसने 13 राष्ट्रीय चुनावों में हिस्सा लिया है, जिनमें से 9 बार विजयी होकर सरकार बनाई है। पार्टी ने दावा किया कि उसकी भागीदारी के बिना चुनाव करवाना देश को गहरे संकट में धकेलने के बराबर है। पार्टी ने साफ कहा कि बांग्लादेश में निष्पक्ष चुनाव कराना यूनुस के बस की बात नहीं है।

    पार्टी की मुख्य मांगें
    – अवामी लीग ने चुनाव कार्यक्रम को खारिज करते हुए कई बड़े कदमों की मांग की है:
    – पार्टी पर लगाए गए सभी प्रतिबंध तत्काल हटाए जाएं
    – शेख हसीना सहित नेताओं पर दर्ज फर्जी मामलों को वापस लिया जाए
    – सभी राजनीतिक बंदियों को बिना शर्त रिहा किया जाए
    – मौजूदा अंतरिम सरकार को हटाकर एक तटस्थ केयरटेकर सरकार बनाई जाए, जो स्वतंत्र और सहभागी चुनाव करा सके
    – पार्टी ने कहा कि देश की आजादी की अगुवाई करने वाली पार्टी को चुनाव प्रक्रिया से बाहर रखने की कोशिश राष्ट्र को अस्थिरता की ओर ले जाएगी।

    CEC का ऐलान: 12 फरवरी 2026 को राष्ट्रीय चुनाव और जनमत संग्रह
    इससे पहले बांग्लादेश के मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) ए.एम.एम. नासिर उद्दीन ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए घोषणा की कि देश में 12 फरवरी 2026 को राष्ट्रीय चुनाव होंगे। यह चुनाव अगस्त 2024 में छात्र-नेतृत्व वाले आंदोलन के बाद होने वाला पहला राष्ट्रीय मतदान होगा, जिसने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को सत्ता से हटाया था।

    उसी दिन जुलाई चार्टर पर एक राष्ट्रीय जनमत संग्रह भी कराया जाएगा। इस चार्टर में कार्यपालिका की शक्तियां सीमित करने और न्यायपालिका को मजबूत करने जैसे बड़े सुधार प्रस्तावित हैं। मतदान देश की 300 संसदीय सीटों पर एक साथ होगा- यह बांग्लादेश के इतिहास में पहली बार ट्विन पोल्स होंगे।

    चुनावी प्रक्रिया की समयरेखा
    – नामांकन दाखिल: 29 दिसंबर 2025 से
    – चुनाव प्रचार: 22 जनवरी 2026 से शुरू
    – चुनाव प्रचार समाप्ति: मतदान से 48 घंटे पहले

    आगामी चुनाव का संभावित मुकाबला
    विशेषज्ञों का मानना है कि आगामी चुनाव में मुख्य प्रतिस्पर्धा इन दलों के बीच रहने की संभावना है:
    – बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP)- नेतृत्व बेगम खालिदा जिया
    – जमात-ए-इस्लामी
    – नेशनल सिटिजन्स पार्टी (NCP)- जिसने 2024 के छात्र आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई

    अवामी लीग की अनुपस्थिति चुनावी परिदृश्य को जटिल बना सकती है, और उसकी सख्त आपत्तियों के कारण बांग्लादेश का राजनीतिक तापमान एक बार फिर तेजी से बढ़ गया है।

  • बंगाल: बाबरी मस्जिद की नींव रखने वाले हुमायूं कबीर को मिली जान से मारने की धमकियां, बढ़ाई गई निजी सुरक्षा

    बंगाल: बाबरी मस्जिद की नींव रखने वाले हुमायूं कबीर को मिली जान से मारने की धमकियां, बढ़ाई गई निजी सुरक्षा


    नई दिल्‍ली । पश्चिम बंगाल(West Bengal) के मुर्शिदाबाद (Murshidabad)जिले में 6 दिसंबर को अयोध्या की बाबरी मस्जिद के मॉडल पर आधारित एक नई मस्जिद की नींव रखने वाले तृणमूल कांग्रेस(Trinamool Congress) (टीएमसी) के निलंबित विधायक हुमायूं कबीर (Humayun Kabir)को लगातार जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं। राज्य के बाहर से आने वाले इन फोन कॉल्स ने उनकी सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ा दी है। धमकियों के मद्देनजर हुमायूं ने तत्काल प्रभाव से अपनी निजी सुरक्षा बढ़ाने का फैसला किया है और हैदराबाद से एक विशेष सुरक्षा टीम बुलाई है। इसके अलावा, वे कलकत्ता हाईकोर्ट का रुख करने की तैयारी में हैं, जहां से केंद्रीय सुरक्षा बलों की मांग करेंगे।

    हैदराबाद से सुरक्षा टीम हायर करने को लेकर हुमायूं कबीर ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा- मुझे सिक्योरिटी चाहिए क्योंकि उत्तर प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे राज्यों से मुझे धमकी भरे कॉल आए हैं। मैं डरा हुआ नहीं हूं लेकिन मेरे समर्थक सुरक्षा बढ़ाने के लिए कह रहे हैं। मैंने हैदराबाद से प्राइवेट सिक्योरिटी हायर कर ली है और जल्द ही कलकत्ता हाई कोर्ट में और सिक्योरिटी के लिए अपील भी करूंगा।

    इसके अलावा, हुमायूं कबीर ने मंगलवार को संवाददाताओं से बातचीत में कहा- मुझे राज्य के बाहर से लगातार धमकी भरे फोन आ रहे हैं। लोग कह रहे हैं कि वे मुझे जान से मार देंगे। टीएमसी सरकार ने अभी तक मेरी सरकारी सुरक्षा नहीं हटाई है, लेकिन मैं पश्चिम बंगाल पुलिस पर भरोसा नहीं कर पा रहा हूं। इसलिए, तत्काल उपाय के तौर पर मैंने हैदराबाद से 8 निजी सुरक्षाकर्मियों की एक टीम बुलाई है। ये लोग कल से मेरी सुरक्षा संभालेंगे। कबीर ने यह भी बताया कि उन्होंने राज्य सरकार, केंद्र सरकार और पुलिस को ईमेल के जरिए सुरक्षा बढ़ाने की गुहार लगाई है। अगर हाईकोर्ट नौशाद सिद्दीकी जैसे लोगों को 6-8 सुरक्षाकर्मी दे सकता है, तो मुझे क्यों नहीं? मैं अदालत जाकर केंद्रीय फोर्स की मांग करूंगा।

    बाबरी मस्जिद शिलान्यास और विवाद
    यह पूरा विवाद 6 दिसंबर को शुरू हुआ, जब 1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी पर हुमायूं कबीर ने मुर्शिदाबाद के रेजीनगर (बेलडांगा क्षेत्र) में एक नई मस्जिद का शिलान्यास किया। यह मस्जिद अयोध्या वाली बाबरी मस्जिद के डिजाइन पर आधारित बताई जा रही है, जिसका निर्माण तीन साल में पूरा होने का दावा किया गया है। कुल बजट करीब 300 करोड़ रुपये का है, जिसमें सऊदी अरब से आए मौलवियों की मौजूदगी और 60,000 पैकेट बिरयानी का इंतजाम भी शामिल था। समर्थकों ने सिर पर ईंटें रखकर जुलूस निकाला और ‘अल्लाहु अकबर’ के नारे लगाए।

    कार्यक्रम के दौरान इलाके में भारी सुरक्षा व्यवस्था थी। प्रशासन ने रेजीनगर और बेलडांगा को हाई-सिक्योरिटी जोन घोषित कर दिया था। लगभग 3,000 पुलिसकर्मी, रैपिड एक्शन फोर्स (आरएएफ), बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स (बीएसएफ) और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) तैनात किए गए थे। राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस ने शांति बनाए रखने की अपील की थी। कुछ लोगों ने कोलकाता हाईकोर्ट में निर्माण रोकने की याचिका दायर की, लेकिन कोर्ट ने हस्तक्षेप से इनकार कर दिया और शांति बनाए रखने की जिम्मेदारी राज्य सरकार पर डाल दी।

    राजनीतिक प्रतिक्रियाएं और टीएमसी से निष्कासन
    शिलान्यास के ऐलान के बाद ही हुमायूं कबीर को टीएमसी ने 4 दिसंबर को निलंबित कर दिया था। भाजपा ने इसे ‘सांप्रदायिक ध्रुवीकरण’ का प्रयास बताते हुए ममता बनर्जी सरकार पर निशाना साधा। हुमायूं ने शुरुआत में विधानसभा से इस्तीफा देने की बात कही थी, लेकिन दो दिन बाद यू-टर्न ले लिया। उन्होंने कहा- मैं इस्तीफा नहीं दूंगा, लेकिन टीएमसी ने सदन में मेरी सीटिंग अरेंजमेंट बदल दिया है। टीएमसी ने आरोप लगाया कि कबीर मस्जिद निर्माण के लिए फंडिंग जुटाने के बहाने सांप्रदायिक तनाव फैला रहे हैं। कबीर ने इसका खंडन किया और कहा कि यह एक धार्मिक आयोजन है, जिसमें कोई राजनीति नहीं है।

  • इमरान खान को अडियाला जेल से हटाकर कहीं और ले जाने की तैयारी में शहबाज सरकार !

    इमरान खान को अडियाला जेल से हटाकर कहीं और ले जाने की तैयारी में शहबाज सरकार !

    इस्‍लामाबाद। लगातार बढ़ते दबाव और विरोध प्रदर्शनों के बीच पाकिस्तान में शहबाज शरीफ की सरकार अब पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को अडियाला जेल से दूसरी जगह शिफ्ट करने की तैयारी कर रही है। जानकारी के मुताबिक 2 साल से ज्यादा समय से जेल में बंद इमरान खान को जल्द ही रावलपिंडी की इस जेल से दूसरी जेल भेजा जा सकता है। स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इमरान खान के समर्थन में लगातार हो रहे प्रदर्शनों से प्रशासन पर दबाव बढ़ता जा रहा है और और सुरक्षा एजेंसियों को चिंता है कि हालात और बिगड़ सकते हैं।

    Wion न्यूज की एक रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान के एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया है कि राज्य सरकार और केंद्र सरकार के बीच बातचीत के बाद खान को दूसरी जगह भेजने पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है।

    रिपोर्ट के मुताबिक पूर्व प्रधानमंत्री को अटॉक डिस्ट्रिक्ट जेल में शिफ्ट किया जा सकता है।
    शरीफ सरकार का क्या बहाना?

    जहां एक तरफ शहबाज शरीफ की सरकार इन प्रदर्शनों के बाद जवाब नहीं दे पा रही है, वहीं दूसरी तरह सरकार नए बहाने बना रही है। प्रधानमंत्री के प्रवक्ता इख्तियार वली ने कहा है कि लगातार प्रदर्शनों से जेल के आसपास रहने वाले लोगों का रोजमर्रा का जीवन प्रभावित हो रहा है। सरकार की तरफ से यह भी कहा है कि सार्वजनिक प्रदर्शनों की आड़ में PTI के कुछ नेता जानबूझकर हालात बिगाड़ने की कोशिश कर रहे हैं।
    फिर भड़की हिंसा

    इससे पहले अडियाला जेल के बाहर एक बार फिर प्रदर्शन उग्र हो गया है। बीते मंगलवार को तनाव तब और बढ़ गया जब जेल अधिकारियों ने इमरान खान की बहनों और उनकी लीगल टीम को खान से मिलने की इजाजत नहीं दी। इसके बाद अलीमा खान और उजमा खान ने अन्य समर्थकों के साथ जेल के बाहर डेरा डाल दिया और जमकर नारेबाजी की।

  • अमेरिका में बच्चे को जन्म देकर नागरिकता हासिल करना तो अब लगेगा झटका

    अमेरिका में बच्चे को जन्म देकर नागरिकता हासिल करना तो अब लगेगा झटका

    वॉशिंगटन । भारत में अमेरिकी दूतावास ने साफ किया है कि ऐसे लोगों को टूरिस्ट वीजा नहीं मिलेगा, जिनका मकसद अमेरिका में बच्चे को जन्म देकर अमेरिकी नागरिकता हासिल करने का होगा। अमेरिकी दूतावास ने झटका देते हुए कहा कि अगर इस बात का कोई संकेत मिलता है कि टूरिस्ट अमेरिकी धरती पर बच्चे को जन्म देकर नागरिकता पाने का शॉर्टकट अपनाना चाहता है, तो अमेरिका वीजा एप्लीकेशन प्रोसेस नहीं करेगा।

    भारत में अमेरिकी दूतावास ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा,, “अमेरिकी काउंसलर अधिकारी टूरिस्ट वीजा एप्लीकेशन को मना कर देंगे, अगर उन्हें लगता है कि यात्रा का मुख्य मकसद अमेरिका में बच्चे को जन्म देकर बच्चे के लिए अमेरिकी नागरिकता हासिल करना है। इसकी इजाजत नहीं है।”

    इसके अलावा, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दस लाख डॉलर की ‘ट्रंप गोल्ड कार्ड’ योजना शुरु करने की घोषणा की है। यह एक वीजा कार्यक्रम है, जो अप्रवासियों को अमेरिकी नागरिकता प्राप्त करने का मार्ग प्रदान करेगा। ट्रंप का कहना है कि भारत और चीन जैसे देशों के छात्रों का अमेरिका के शीर्ष विश्वविद्यालयों से स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद स्वदेश लौटना शर्मनाक है। बुधवार को घोषित किया गया ‘ट्रंप गोल्ड कार्ड’ योजना एक ऐसा वीजा कार्यक्रम है जो अमेरिका को पर्याप्त लाभ प्रदान करने की किसी व्यक्ति की क्षमता पर आधारित है।

    ट्रंप ने दावा किया कि ‘ट्रंप गोल्ड कार्ड’ योजना कंपनियों को देश में इस तरह की प्रतिभाओं को नियुक्त करने और बनाए रखने में सक्षम बनाएगी। व्हाइट हाउस में एक बैठक में ट्रंप ने कहा, ‘‘किसी महान व्यक्ति का हमारे देश में आना एक उपहार के समान है, क्योंकि हमें लगता है कि ये कुछ ऐसे असाधारण लोग होंगे जिन्हें यहां रहने की अनुमति नहीं दी जाएगी। कॉलेज से स्नातक करने के बाद, उन्हें भारत वापस जाना पड़ता है, उन्हें चीन वापस जाना पड़ता है, उन्हें फ्रांस वापस जाना पड़ता है। उन्हें वापस वहीं जाना पड़ता है, जहां से वे आए थे। वहां रुकना बहुत मुश्किल है। यह शर्मनाक है। यह एक हास्यास्पद बात है। हम इस पर ध्यान दे रहे हैं।’’

  • अमेरिका को NATO से निकालो, US कांग्रेस में पेश हुआ बिल

    अमेरिका को NATO से निकालो, US कांग्रेस में पेश हुआ बिल

    बिल को पेश करते हुए कहा है कि यह सैन्य गठबंधन अब भी कोल्ड वॉर की मानसिकता से गुजर रहा है और इससे अमेरिकी टैक्सपेयर्स के ट्रिलियन डॉलर बर्बाद हो रहे हैं।

    एक रिपोर्ट के मुताबिक केंटकी के सांसद थॉमस मैसी ने बीते मंगलवार को यह बिल कांग्रेस में पेश किया था। इस दौरान उन्होंने कहा कि NATO उस वक्त बनाया गया था, जब सोवियत यूनियन मौजूद था, लेकिन अब वह खतरा खत्म हो चुका है।

    मैसी ने कहा, “अमेरिका को NATO से बाहर निकलना चाहिए और उस पैसे को अपने देश की सुरक्षा पर लगाना चाहिए, ना कि सोशलिस्ट देशों पर। NATO की वजह से अमेरिकी टैक्सपेयर्स के ट्रिलियन डॉलर खर्च हुए हैं और इससे अमेरिका के वैश्विक जंगों में उलझने का भी जोखिम बना रहता है।” सांसद ने कहा कि अमेरिका पूरी दुनिया के लिए सुरक्षा कवच नहीं बन सकता, खासकर तब जब अमीर देश अपनी खुद की रक्षा पर खर्च नहीं करना चाहते।”

    जानकारी के मुताबिक अगर यह बिल संसद से पास हो जाता है, तो अमेरिकी सरकार को औपचारिक रूप से NATO को सूचित करना होगा कि वह सदस्यता खत्म कर रही है। साथ ही, अमेरिका से NATO के बजट में जाने वाला पैसा भी रोक दिया जाएगा।
    पहले भी उठी है मांग

    इससे पहले रिपब्लिकन सीनेटर माइक ली ने भी पिछले साल इस तरह की साल उठाई थी। माइक ली ने कहा था कि NATO में बने रहना अब अमेरिका की रणनीतिक जरूरतों से मेल नहीं खाता।वहीं पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनके कई रिपब्लिकन सहयोगी लंबे समय से NATO पर यह आरोप लगाते रहे हैं कि अमेरिका इस गठबंधन में अपनी हिस्सेदारी से कई गुना ज्यादा पैसा खर्च करता है।