सरकार का सोनिया गांधी पर हमला नेहरू के दस्तावेज लौटाने की मांग कहा – ये निजी संपत्ति नहीं हैं


नई दिल्ली । भारत सरकार ने कांग्रेस नेता सोनिया गांधी से पंडित जवाहरलाल नेहरू से संबंधित 51 बक्सों में रखे महत्वपूर्ण दस्तावेजों को प्रधानमंत्री संग्रहालय और पुस्तकालय पीएमएमएल को वापस करने की मांग की है। यह दस्तावेज 2008 में तात्कालिक प्रधानमंत्री संग्रहालय से गांधी परिवार को सौंपे गए थे लेकिन अब तक इन्हें वापस नहीं किया गया है। सरकार ने इन दस्तावेजों को निजी संपत्ति मानने से इनकार करते हुए कहा है कि ये सार्वजनिक अभिलेख हैं और इनकी सार्वजनिक पहुंच जरूरी है।

केंद्रीय संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने इस मुद्दे पर कहा यह कोई निजी पारिवारिक दस्तावेज नहीं हैं। ये भारत के पहले प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय अभिलेख हैं और इन्हें सार्वजनिक अभिलेखागार में होना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि इन दस्तावेजों की अदला-बदली को लेकर संसद में कई बार चर्चा हो चुकी है लेकिन अब तक इन्हें वापस नहीं किया गया।

विवाद तब और बढ़ गया जब भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर ने लोकसभा में एक सवाल उठाया कि क्या 2025 में पीएमएमएल के निरीक्षण के दौरान नेहरू के दस्तावेज गायब पाए गए थे। इसके जवाब में शेखावत ने साफ किया कि ये दस्तावेज लापता नहीं हैं बल्कि सोनिया गांधी के पास हैं और उनका स्थान पूरी तरह से ज्ञात है। उन्होंने कहा कि ये दस्तावेज 2008 में विधिवत तरीके से गांधी परिवार को सौंपे गए थे लेकिन वे अब भी वापस नहीं किए गए हैं।

शेखावत ने आगे कहा सोनिया गांधी से यह पूछा जाना चाहिए कि क्यों ये दस्तावेज अब तक वापस नहीं किए गए जबकि कई बार पीएमएमएल की ओर से पत्र भेजे गए हैं। अगर कुछ छिपाया जा रहा है तो क्या यह सही है? उन्होंने यह भी जोड़ा कि इतिहास को सही तरीके से समझने और उसमें सही दृष्टिकोण विकसित करने के लिए इन दस्तावेजों तक सभी को पहुंच मिलनी चाहिए। विपक्षी कांग्रेस ने इस मुद्दे पर जवाब देते हुए शेखावत से पूछा कि क्या अब वह माफी मांगेंगे क्योंकि यह स्पष्ट हो गया है कि दस्तावेज गायब नहीं थे। कांग्रेस ने सरकार पर यह आरोप भी लगाया कि वह इस मुद्दे को केवल राजनीतिक लाभ के लिए तूल दे रही है।

कुल मिलाकर यह मामला अब एक गंभीर राजनीतिक मुद्दा बन गया है। जहां एक तरफ सरकार ने नेहरू के दस्तावेजों को सार्वजनिक अभिलेखागार में रखने की जरूरत जताई है वहीं कांग्रेस और गांधी परिवार की ओर से इसे एक निजी और परिवारिक अधिकार बताया जा रहा है। अब देखना यह होगा कि इस मामले पर ममता बनर्जी और सोनिया गांधी किस तरह की प्रतिक्रिया देती हैं और सरकार इस मुद्दे को किस दिशा में ले जाती है।