कोट्टनकुलंगरा श्रीदेवी मंदिर में पुरुष श्रद्धालुओं का अनोखा सोलह श्रृंगार देवी से मनचाही मुराद की परंपरा



नई दिल्ली । केरल के कोल्लम जिले में स्थित कोट्टनकुलंगरा श्रीदेवी मंदिर अपनी एक अनोखी परंपरा के लिए जाना जाता है जिसमें पुरुष श्रद्धालुओं को पूजा से पहले महिलाओं की तरह सोलह श्रृंगार करना अनिवार्य माना जाता है। इस परंपरा का पालन करने वाले श्रद्धालु देवी की आराधना से पहले साड़ी पहनते हैं चूड़ियां पहनते हैं बिंदी लगाते हैं और अन्य श्रृंगार सामग्री से खुद को सजाते हैं। इस अनूठी परंपरा के चलते यह मंदिर देश-विदेश में चर्चा का विषय बना हुआ है।

परंपरा का महत्व

कोट्टनकुलंगरा मंदिर की इस परंपरा को श्रद्धा और आस्था का प्रतीक माना जाता है। यह परंपरा सदियों पुरानी है और यहां आने वाले श्रद्धालु इसे पूरे समर्पण के साथ निभाते हैं। पुरुष श्रद्धालु जब पूजा के लिए तैयार होते हैं तो वे स्वयं को पूरी तरह से सजाते हैं जैसे महिलाएं पारंपरिक रूप से सोलह श्रृंगार करती हैं। इस पूजा में श्रद्धालु देवी भाग्यवती से अच्छी नौकरी स्वास्थ्य विवाह और परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। यह परंपरा पूरी तरह से समाज में समर्पण और ईश्वर के प्रति श्रद्धा को बढ़ावा देने के लिए मानी जाती है। इस परंपरा के कारण मंदिर में हर साल श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या में भीड़ रहती है जो इस अनुभव को एक अलग ही रूप में अपनाते हैं।

मंदिर के आकर्षण

कोट्टनकुलंगरा श्रीदेवी मंदिर के अद्वितीय रीति-रिवाज और परंपराओं ने इसे एक सांस्कृतिक धरोहर के रूप में स्थापित किया है। यहां पर लोग न केवल पूजा-अर्चना करने आते हैं बल्कि इस अनोखी परंपरा का पालन करने के लिए भी दूर-दूर से आते हैं। मंदिर का वातावरण बेहद शांतिपूर्ण और श्रद्धापूर्ण होता है जहां पर हर किसी को अपने व्यक्तिगत आस्थाओं का पालन करने का पूरा अवसर मिलता है।

सोलह श्रृंगार

सोलह श्रृंगार का पालन करने से जुड़े कई महत्व हैं जो महिलाओं के सौंदर्य और आंतरिक शक्ति के प्रतीक माने जाते हैं। इस परंपरा के तहत पुरुष श्रद्धालु स्वयं को साड़ी पहनकर सजाते हैं जो उन्हें पारंपरिक रूप से महिलाओं के साथ जोड़ता है और ईश्वर के साथ एक अद्वितीय संबंध स्थापित करता है। यह एक अद्भुत दृष्टिकोण है जो पुरुषों और महिलाओं के बीच समानता को बढ़ावा देने की कोशिश करता है साथ ही आस्था के द्वारा सभी को एकजुट करने का कार्य करता है।

कोट्टनकुलंगरा श्रीदेवी मंदिर की यह परंपरा न केवल श्रद्धा का प्रतीक है बल्कि यह यह भी दर्शाती है कि धार्मिक आस्थाएं और सांस्कृतिक परंपराएं समय के साथ बदल सकती हैं। पुरुषों द्वारा सोलह श्रृंगार करने की यह परंपरा एक नई सोच और धार्मिक समर्पण की दिशा में एक कदम है। इस मंदिर की विशेषता और परंपरा को देखकर यह कहा जा सकता है कि यहाँ आस्था और आचरण का अद्वितीय संगम है जो सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है।