भोपाल में कुटुंब न्यायालय की नेशनल लोक अदालत में 100 से अधिक रिश्तों को बचाया, पति ने बेटी को गोद में उठाते ही मांगी माफी


भोपाल । भोपाल के कुटुंब न्यायालय में आयोजित नेशनल लोक अदालत में 100 से अधिक रिश्तों को टूटने से बचाया गया। इस दौरान पति-पत्नी ने अपने बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए गिले-शिकवे भूलकर फिर से एक-दूसरे के साथ रहने का निर्णय लिया। यह अदालत उन दंपत्तियों के लिए वरदान साबित हुई जिनके रिश्ते झगड़ों और विवादों की वजह से खटाई में थे।

एक विशेष मामले में जहां एक व्यवसायी पति और उसकी पत्नी के बीच लंबे समय से विवाद चल रहा था दोनों के बीच काउंसलिंग सत्र में एक भावुक पल आया। पत्नी ने डेढ़ साल की अपनी बेटी को पति से दूर रखकर मायके भेज दिया था और वह अपने पति से मिलने भी नहीं देती थी। पत्नी ने पति के खिलाफ भरण-पोषण का केस भी दायर कर रखा था और पति का कहना था कि यदि पत्नी मायके में रहेगी तो वह भरण-पोषण नहीं देगा।

इस बीच कुटुंब न्यायालय में काउंसलिंग के दौरान जज ने पति से कहा कि वह अपनी बेटी को गोद में लेकर पत्नी से मिलें। जब पति ने बेटी को गोद में उठाया तो उसकी आँखों में पछतावा और अफसोस था। कई महीनों से अपनी बेटी से अलग रह रहे पति को अपनी गलती का एहसास हुआ। इसके बाद उसने पत्नी से माफी मांगी और समझौते की इच्छा जताई।
पत्नी ने भी बच्चों के भविष्य को देखते हुए पति की माफी स्वीकार की और दोनों ने एक-दूसरे को समझते हुए एक नया अध्याय शुरू करने का निर्णय लिया। इसके बाद वे दोनों घर लौट गए और अपने रिश्ते को फिर से संजीवनी दी।

कुटुंब न्यायालय की नेशनल लोक अदालत में इस तरह के कई अन्य मामले भी आए जिनमें रिश्तों में दरार आ चुकी थी लेकिन अदालत की मध्यस्थता से और समझाइश से वे सब वापस एकजुट हो गए। इस प्रक्रिया ने यह साबित किया कि सही मार्गदर्शन और समझ के साथ पारिवारिक रिश्तों को पुनर्निर्मित किया जा सकता है। भोपाल के कुटुंब न्यायालय में आयोजित नेशनल लोक अदालत में कई रिश्तों को टूटने से बचाया गया। एक दिल छूने वाले मामले में पति ने अपनी बेटी को गोद में उठाते हुए पत्नी से माफी मांगी और दोनों ने मिलकर अपने रिश्ते को फिर से संजीवित किया। यह अदालत परिवारों के लिए एक नई उम्मीद बनकर उभरी है।